अब किसकी बारी हैं?

झुका कर पलकों को शर्माना , ये अदा मुझे प्यारी हैं
फिर तेरा कुछ ना कहना ,ख़ामोशी तेरी सबसे भारी हैं

वो शब्द हो जाते हैं अमर जो निकले तेरे मुख से
तेरे लबों तक आने को शब्दों मे जंग जारी हैं

झील सी गहरी नीली आँखे ,गुलाब से होंठ और दहकता बदन
इंसानो तक तो ठीक हैं, क्या तुम्हारी परियों से भी यारी हैं

मुझे बरबाद करके भी तुम्हें चैन नहीं मिला क्या
इश्क़ के बाज़ार में तवाह होने की अब किसकी बारी हैं।

अब ये इश्क़, वफ़ा , बाबु , शोना हमसे ना होगा
आग लगी है दिल के घर मे, हर तरफ़ लाचारी हैं।

-ब्लेंक़ राइटर

Comments

Post a Comment

Popular Posts