ताज और मैं

सामने ताज़ के खड़ा हूँ बेसाज़ .....
महसूस कर सकता हूँ मैं तुम्हें  और तुम्हारी महक यहाँ की हवाओं में महक रही है।
ज़िन्दगी भी कितनी अज़ीब है ना....
एक ख़ूबसूरत शाम के आग़ोश में में और ताज साथ है बस तुम्हारी कमी है।
ताज़ गुमसुम सा है ,में बेसाज़ हूँ। "ताज़" कल ताज था। आज वो ताज़ तुमने पहन लिया है।
शाहजहाँ का इसे बनाने का मक़सद आज मिट्टी में मिल गया।
उसे क्या मालूम था कि जिस ख़ूबसूरती के लिए उसने यह खूबसूरत मीनार बनवाई थी।
 उससे भी हसीं कोई होगा कभी.... चाँद का ग़ुरूर तो तुमने पहले ही तोड़ दिया था...
आज बारी "ताज" की थी.. अब ताज़ अपने आप को दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत मीनार नहीं कह पाएगा।
दुनिया ने दावा किया कि ताज़ सबसे ख़ूबसूरत है। तुमने आज सारी अफवाओं पर विराम लगा दिया..
. शुक्रिया तुम्हारा जो तुमने लोगों की गलतफ़हमियों को दूर किया...
तुमने एक समाजसुधारक का काम किया...  अब "ताज़" वैसा नहीं "ताज़" अब तन के खड़ा नहीं है।
उसने मेरी आँखों में तुम्हारी तस्वीर देख ली है
अब उसे ग़ुरूर नहीं रहा अपनी ख़ूबसूरती पर..  मन ही मन रो रहा है ताज़ जागा तो है मगर सो रहा है
आज.. कोश रहा है वह ... तुम्हें शाहजहाँ को... या मुझे....  अब तुम्हारे दीवानों में एक नाम और जुड़ गया..
. दुनिया जिसकी दीवानी है वो तेरी तरफ मुड़ गया अब "ताज" ताज़ का ना रहा..
 -ब्लेंकराइटर

Comments

Popular Posts