मैं शराब क्यूँ पीता हूँ...

शराब ना शौक़ हैं मेरा ना मेरी आदत हैं
तेरी याद सताती हैं तो पीता हूँ

मदिरालय घर नहीं मेरा मैं जानता हूँ
ये मेरा दर्द मिटाती है तो पीता हूँ

इसकी कड़वाहट तेरे लबों के ज़ायक़े को भुला देगी
हाँ भुला देगी तभी तो पीता हूँ

बिन तेरे तो मैं तन्हा जल रहा था
ये अपने साथ मुझे भी जलती है तो पीता हूँ

इसे पाकर कुछ नहीं मिलना मुझे ,जानता हूँ
तुझे खोने का गम भुला देगी तो पीता हूँ

तेरे वादे से ज़िंदा हूँ बदनसीब मर भी नहीं सकता
ये मेरी उम्र घटाती है तो पीता हूँ
-ब्लेंक़ राईटर

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