ग़ज़ल
ज़िंदगी हमेशा परेशानियों में रही
मौहब्बत सिर्फ़ कहानियों में रही
बुढ़ापा उनका सुकून में कटेगा
मौज जिनकी जवानियों में रही
थम गयी ज़िंदगी अब अच्छा है
जब रही तब रवानीयों में रही
हमें आता है हुनर तन्हा चलने का
तभी तो मंज़िले वीरानियों में रही
तू बेवफ़ा थी मैंने कहा नहीं
तेरी चालाकियाँ हमेशा नादानियों में रही
-ब्लेंक़ राइटर
मौहब्बत सिर्फ़ कहानियों में रही
बुढ़ापा उनका सुकून में कटेगा
मौज जिनकी जवानियों में रही
थम गयी ज़िंदगी अब अच्छा है
जब रही तब रवानीयों में रही
हमें आता है हुनर तन्हा चलने का
तभी तो मंज़िले वीरानियों में रही
तू बेवफ़ा थी मैंने कहा नहीं
तेरी चालाकियाँ हमेशा नादानियों में रही
-ब्लेंक़ राइटर
Comments
Post a Comment