ग़ज़ल
अंधेरी रात में चमकता चंद्रमा का नूर हैं
जब समंदर हैं तो दरिया को क्यूँ ग़ुरूर हैं
मौहब्बत में मिलन हो जाए तो वो अमर नहीं होती
तभी तो राधा से कन्हैया दूर है
हम ना करेंगे कभी कोई शिकवा गिला तुमसे
ज़ख़्म की औक़ात क्या हमें क़त्ल भी मंज़ूर हैं
उसने मौहब्बत में नफ़ा मुनाफ़ा देखा....
उन्हें ग़लत कैसे कहे ये दुनिया का दस्तूर हैं
-ब्लेंक़ राईटर
जब समंदर हैं तो दरिया को क्यूँ ग़ुरूर हैं
मौहब्बत में मिलन हो जाए तो वो अमर नहीं होती
तभी तो राधा से कन्हैया दूर है
हम ना करेंगे कभी कोई शिकवा गिला तुमसे
ज़ख़्म की औक़ात क्या हमें क़त्ल भी मंज़ूर हैं
उसने मौहब्बत में नफ़ा मुनाफ़ा देखा....
उन्हें ग़लत कैसे कहे ये दुनिया का दस्तूर हैं
-ब्लेंक़ राईटर
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