जोड़ नहीं पाया

जब भी तुम ज़ुल्फों को खोले
सामने मेरे आती हो
अमावस की काली रातों में
जब चाँदनी बनकर छाती हो।

हम सहमे से घबराते से
यूँ तुमको देखा करते है।
दिल के ठंडे अरमानो को
हम फिर से सेका करते है।

में अपने नाम से तेरे नाम को अब तक जोड़ नहीं पाया
इस प्रेम के उलझे चक्रव्यूह को अब तक तोड़ नहीं पाया।

जब सुबह सबेरे आती हो
सपनो से हमें जगाती हो।
उम्मीदों के गट्ठर दे कर
मेरा चैन सुकूं ले जाती हो।

हम खोये तेरे सपनों में
सो जाते है खो जाते है।
फिर मम्मी हमें जगाती है।
हम उठते है शरमाते है।

उस शर्म लिहाज़ का सुंदर दामन अब तक छोड़ नहीं पाया।
इस प्रेम के उलझे चक्रव्यूह को अब तक तोड़ नहीं पाया।

जब कॉलेज के पहले लेक्चर में ही
तेरी याद हमें सताती है।
आँखों से कानो तक जाती
फिर दिल में वो छुप जाती है।

इस प्यार की नीली चादर को में अब तक ओढ़ नहीं पाया।
इस प्रेम के उलझे चक्रव्यूह को अब तक तोड़ नहीं पाया।

जब सँग किसी के देख के तुमको
दिल मेरा तन्हा जलता है।
सब ख़्वाब टूट से जाते है।
ना कोई सपना पलता है।

जब तुम होंठो को घुमा घुमा कर
हँसती हो मुस्काती हो।
हम सुनते है हर पल तुमको
तुम फिर भी ना शर्माती हो।

उन होंठो से इन होंठो को में अब तक जोड़ नहीं पाया।
इस प्रेम के उलझे चक्रव्यूह को अब तक तोड़ नहीं पाया।

बिन मेकअप के तुम इतनी सुन्दर
मेकअप कर लो तो क्या होगा।
अपनी कोमल सी बाहों में
हमको भर लो तो क्या होगा...

हम ख्वाबो की दरकार लिए
एक दिन यूँ ही मर जाएंगे
इस प्रेम के कक्षपटल पर हम
तेरा नाम अमर कर जाएंगे

इस प्यार की गहरी खाई के पुल को अब तक जोड़ नहीं पाया
इस प्रेम के उलझे चक्रव्यूह को अब तक तोड़ नहीं पाया।
-ब्लेंक राइटर

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