सुबह सुबह

सुबह सुबह धूप को देखा
आपकी तरह खिलती हुई
ना किसी से बात करती है।
अपने ही रंग में जलती हुई।

ना कुछ कहती मुझसे
बिलकुल आपकी तरह
खुद ही खुद में ढ़लती हुई।
ये खूबसूरत सुबह....

ये श्वेत रौशनी भीनी भीनी सी लग रही है।
और ये मौसम भी कुछ छुपाए हुए है अपने आँचल में
मानो मौसम रूपी श्वेत सी रौशनी को खुद में समेटे हुए
.

ये धूप बहुत हसीन है।
समुंदर की तरह नमकीन है।
आओ ज़रा चखो इसे
ये नमकीन ही लगेगी...

आप आ जाना इसे चखने के लिए मेरे शहर की सुबह...और सुबह की खिलखिलाती धूप
तब तक में इसका स्वाद बरक़रार रखूँगा

नमकीन है धूप
शहद हो आप
श्वेत सी जगमग
किरण हो तुम
-ब्लेंक राइटर

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