हुस्न और इश्क़

हुस्न है चाँदी की चमक दिल है गुलाबों जैसा
मेरा महबूब है मोहब्बत की किताबों जैसा
चमकता चाँद सा रोशन की तारों की जवानी है
अकेला नूर है दुनिया में शबाबो जैसा

शहर में चाँद तो निकला फ़क़त रोजा ना हम खोले
उसका चेहरा तो अभी तक है नकाबों जैसा

हज़ारों जाम पीकर भी नशा ना हम पे चढ़ पाया
छलकता जाम है वो कितनी शराबों जैसा

तेरे जुल्मों को भी वो मौत देगा फिर ख़जाने से
दिन तो आने दे किसी रोज हिसाबों जैसा

हुस्न -ऐ-बेबाक पे इतना गुरूर है नहीं अच्छा
रुतवा हमारा भी है लखनऊ के नवाबों जैसा

तुम्हारा रूप है हीरे की कानी में ज़ोहरी ज़माने का
तू मेरी रूह है मगर दिल है हिजाबों जैसा

जो चाहा है जो सोचा है वो क्यों मिलता नहीं "संकल्प"
खुदा का रहम भी है रात के ख्वाबों जैसा
-ब्लेंक राइटर

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