"अधूरे ख़्वाब"

कुछ ख़्वाब अधूरे लगते है।
कोई बात ना पूरी लगती है।
एक शाम ठहर सी जाती है
जब सुबह ज़रूरी लगती है।

इन सुबहों की गिरती लाली में संसार अधूरा लगता है।
बिन तुम ये धरती बादल वन और प्यार अधूरा लगता है।

एक राह जो मेने खोज़ी है।
मंज़िल पर जा कर थम जाए
में पथिक "धरा" पर धरा रहूँ
और प्यास मिलन की जम जाए।

इन प्यासी प्यासी रातों में इज़हार अधूरा लगता है।
बिन तुम ये धरती बादल वन और प्यार अधूरा लगता है।
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वो डोर ह्रदय में बँधी रहे
जो डोर लबों से थी बाँधी
कोई और लबों को छुए तेरे
उठने लगती दिल में आँधी

इन आधी पूरी बातो में सृजनहार अधूरा लगता है।
बिन तुम ये धरती बादल वनऔर प्यार अधूरा लगता है।


वो प्रेम अज़ब सा लगता है
जो प्रेम हृदय सा हो पावन
वो गीत मधुर से लगते है
जिन गीतों में झरता सावन

इन सावन की पावन बूंदों में श्रंगार अधूरा लगता है।
बिन तुम ये धरती बादल वन और प्यार अधूरा लगता है।
-ब्लेंक राइटर

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