छोटू :चाइल्ड आर्टिस्ट या मजदूर




प्रतीकात्मक तस्वीर 


कल शाम को बालकनी में खड़ा था में, नज़रें एक जगह टिक ही नहीं पा रही थी। कभी नज़र वर्मा जी की बालकनी पर तो कभी शर्मा जी की कार पर।
नज़र को संभालने की कोशिश कर ही रहा था कि अचानक ही मेरी नज़र चाय की दूकान पर पर काम करते एक लड़के पर जाकर ठहर गई।
बड़ी ही मधुर आवाज़ में छोटू चिल्ला रहा था "चाय -चाय... ले लो चाय ,पी लो चाय... बहुत ही मासूम चेहरा और प्यारी आवाज़ छोटू की मेरे कानो में शहद घोल रही थी।

यही नाम था उस 12 साल के बच्चे का। कॉलोनी के बहार बने झोपड़ों में से एक महल था छोटू का, एक बार गुज़रा भी था उसके महल के सामने से।
दोस्तों के साथ मस्ती में डूबा हुआ छोटू ऐसा लग रहा था जैसे कोई नन्हा राजकुमार अपने मित्रों के साथ मौज मस्ती कर रहा हो।
उसके चेहरे की मुस्कान उतनी ही सच्ची थी जितना सच है दिन के बाद रात का आना। छोटू के पिता ना होने की वजह से उसे काम करना पड़ता था, माँ उसकी बीमार रहती थी।

उसके नाज़ुक कन्धों पर घर की जिम्मेदारी उतनी ही भारी लग रही थी जितना भारी हुआ होगा उसको अपने पिता की अर्थी को कंधा देना।
फिर भी एक सच्चे योद्धा की तरह छोटू जिन्दगी से लड़ रहा था, माथे पर कोई शिकन भी नहीं थी उसके।

कुछ ही पलों में वर्तमान से भूत का सफ़र तह करके में फिर वर्तमान में आ गया था।
अचानक ही उस नुक्कड़ से कुछ लोगों की टोली गुजरी जो ऊँची -ऊँची आवाजों में चिल्ला रहे थे "बाल मजदूरी पाप हैं,यह एक श्राप हैं"
उनके एक ही नारे से में समझ गया कि बाल मजदूरी के खिलाफ ngo वालें हैं।
सबसे आगे और सबसे तेज़ आवाज़ में जो चिल्ला रहे थे वो थे मेरी ही कॉलोनी के शर्मा जी।
अरे वहीँ शर्मा जी जिनकी खूबसूरत कार को में अभी निहार रहा था, अब उनकी कार है ही इतनी खूबसूरत।
साथ में उनकी धर्मपत्नी भी चिल्ला रही थी "बंद करो बाल श्रम यह कानूनन जुर्म हैं"
और बाकी के लोग उनका पीछा ऐसे कर रहे थे जैसे केजरीवाल का ख़ासी और मोदी का केजरीवाल।

जैसे ही यह काफिला छोटू की दूकान के सामने पहुँचा झट से छोटू ने खुद को नोकर से ग्राहक में तब्दील कर लिया
पल भर में खुद्कों बदलने की यह कला छोटू ने शायद केजरीवाल से सीखी होंगी। यह विचार आया उसे देख कर मेरे दिमाग में।

खैर उनके जाते ही छोटू की आवाज़ फिर बुलंद हो गई और चाय फिर हवाओं में तैरने लगी। अब मैंने भी अपना रूख बदला ,क़दमों को छोटू की तरफ जाने के लिए कहा और कदम चल पड़े।
दरवाज़ा खोलने ही वाला था कि दरवाज़े ने कहा अरे जी ज़रा नीचे तो नज़र डालों मैंने नज़र घुमाई देखा तो नीचे एक आमंत्रण पत्र अपनी बाहों को फैलाएं दरवाज़े की चोखट से गले मिल रहा था।

मैंने उसे उठा कर उनके प्रोग्राम में ख़लल दाल दी थी, ऐसा प्रतीत हुआ मुझे। क्युंकी 2 बार हाथों से छूट कर जब गिरा वह पत्र तो एह्साह हुआ गालियाँ दे रहा था मुझे।
खैर उस दिन इंसान होने का भान हुआ, क्युंकी जीत मेरी हुई पत्र को खोल कर देखा तो ख़ुशी सातवे आसमान पर तब पहुँच गई जब अपने नाम के आगे इज्ज़त से श्री लगा देखा।

अमुमन ऐसा पहली बार हुआ था मेरे साथ। ख़ुशी को पहले आसमान पर लाया और पत्र पढ़ा तो पता चला शर्मा जी के बेटे को बेस्ट चाइल्ड आर्टिस्ट का खिताब मिला था।
अरे वहीँ शर्मा जी खूबसूरत कार के मालिक। 3 दिन पूर्व ही मिला था उनके बेटे वरुण को यह अवार्ड। बाल कलाकार हैं उनका बेटा, नाटकों में काम करता हैं। उसी के उपलक्ष में यह कार्यक्रम रखा गया हैं।

खैर अब वक़्त आ गया था पड़ोसी होने का फ़र्ज़ अदा करने का।
पार्टी आज रात ही थी छोटू की तरफ बढ़ रहे कदम रूक गए और नज़र घड़ी से जा टकराई।
घड़ी ने कहा जाओ तैयार हो जाओ वक़्त बहुत कम हैं, शर्मा जी की पार्टी शुरू होने वाली हैं। अरे वहीँ शर्मा जी......
मैं झट से तैयार हुआ और जा धमका समोसे खाने शर्मा जी के घर।

समोसे तो होंगे ही बड़े लोगों की पार्टी जो हैं।
घड़ी से जो नज़र टकराई थी और अब जो नज़र शर्मा जी के दरवाज़े पर टिकी हैं, इन दोनों के बीच जो वक़्त गुज़रा उस सारे वक़्त में समोसों का भार और उसकी यादों में तड़प रहा था में।

दरवाज़ा खुला, मिसेज शर्मा ने दरवाज़ा खोला। 100 किलो की मिसेज शर्मा मिनी ड्रेस में काफी खूबसूरत लग रही थी। मैंने भी तारीफ की उनकी। क्या करूँ.. करनी पड़ती है।
एक तो ये बड़े लोग, दूसरा इस महंगे ज़माने में बेचारे इतने लोगों को फ्री में इतना खिला रहे थे।
हम ज़रा लेट हो गए थे पर पार्टी तो अपनी ताल से ताल मिला कर चल रही थी।
खैर, अंदर पूरे घर में किलविष का अज़ीज़ प्यार "अंधेरा" कायम था|
जब हमने अपनी नज़र को "गेट सेट गो" कहा तो नज़र दोड़ गई उसैन बोल्ट की तरह और 6.3 सेकंड में ही 500 मीटर से भी जादा का चक्कर लगा कर वापस लौट आई। बोल्ट 9.58 सेकंड लेता हैं 100 मीटर के।
तभी हमने फैसला कर लिया कि अगले ओलंपिक्स में अपनी नज़र को उतारूगा, दो पांच गोल्ड तो जीत ही लेगी।

खैर नज़र ने पूरा हाल सुनाया हमें।
कहा कि शर्मा जी का घर बच्चन जी की मधुशाला का मॉडर्न रूप लग रहा हैं।
लग रहा हैं सब के सब अंग्रेज़ बन गए हों।
लगे हैं सब म्लेच्छ पेलने, बोले भी क्यों ना ""हाउ आर यू "" ऐसा बोलने से इज्ज़त जो बढ़ जाती हैं।
दूसरी तरफ शर्मा जी और मिसेज शर्मा "हेब सम ड्रिंक्स" पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे थे।

उनकी एक पकड़ मुझ पर आकर ठहर गई मैंने कहा "हओ पीते हैं"। बगल में खड़ी लड़की ने 2 बार मुझे ऊपर से नीचे तक देखा।
और जैसे ही मेरी नज़र ने उसको नापने की कोशिश की उसके कम कपड़ों की वजह से मेरी नज़र शर्मा गई। अरे शर्मा गई.. ना कि वो "शर्मा जी" ..

सारे महानुभाव अपनी प्रबुद्धता की बातों से अनुग्रहीत। और हम ऐसे अकेले खड़े थे मानों परम निष्ठुर हों। घुप्प अँधेरे में अपने जीवन का प्रकाश ढूँढ रहे हों।
खैर प्रकाश तो नहीं मिला हमारे मुहं से प्रकाश निकल गया।
सामने देखा तो प्रकाश पूछ रहा था "वाट यू वांट सर "
हमने भी म्लेच्छ को अपनाया और कहा "बन सॉफ्ट ड्रिंक प्लीज"

बगल का एक छोरा जो कुछ ही महीने पहले गाँव से आया था, मेरी नज़र ने उसका स्कैन किया।
लगा वो तो मुर्गे की टांगों को चीरने, बीच-बीच में अंगूरों का रसपान भी कर लेता।
मैं चोंक गया। घर पर पिता सस्कारों का ज्ञान देते है ,पंडित जो हैं। और बेटा यहां शहर की सतरंगी चड्डी पहनकर संस्कारी गाँव की कब्र पर दौड़ लगा रहा हैं।
हम समझ नहीं पा रहे थे कि सभ्य लोगों ने आसभ्यता का ठेका ले लिया हैं, या आसभ्यता जीने नहीं दी रही सभ्यता को।
क्युंकी सभ्यता का नक़ाब पहनकर असभ्य होना भी एक कला हैं। जैसे शक्तिमान और गंगाधर एक ही व्यक्ति का होना,आपको छोड़कर किसी और को पता नहीं होता।

अँग्रेज़ी शराब में डूबे सारे लोग लगे नचने, बॉलीवुड के बेस्ट डांसरों की आत्माओं से इन सभी के अन्दर प्रवेश कर लिया हो जैसे।
और हम सॉफ्ट ड्रिंक से ही नशीले हुए जा रहे थे।
पार्टी का माहौल नेहद रंगीन था। परंतु हमारी नज़र उस इंसान को खोज रही थी जिसके सम्मान में यही पार्टी थी।
दिख ही नहीं रहा था।
तभी अचानक हमारी नज़र दरवाज़े पर गई, किसी से दस्तक दी थी वहाँ। सब लोगों की नज़र भी वहीँ थी, ऐसा लग रहा था, मानों नज़रों में कुश्ती हो रही हो "पहले में, पहले में"
झट से शर्मा जी ने अपनी उसी आवाज़ में कहा ....अरे वहीँ आवाज़ जिसमे वो नारे लगा रहे थे।
कहते है.."लेडीज एंड जेंटलमैन पुट योअर हैंड्स टूगेदर फॉर बन एंड ओनली वरुण"

इतना कहा ही था की सब के सब लगे तालियाँ पेलने, हमने भी दोनों हथेलियों को एक दूजे का स्पर्श करा ही दिया।..इतना कहा जो था शर्मा जी ने ...
वरुण के चेहरे पर थकान थी, कोई ख़ुशी भी ना थी उसे इस पार्टी की।

सारा दिन काम करके आया था वो। बहुत थका होने के कारण वो सीधा अपने कमरे में चला गया। और तब तक नहीं निकला होगा जब तक लोगों के आखरी जाम ना छलके होंगे।
में कुछ देर बाद ही वहाँ से निकल लिया था।
नज़र ने नज़रों का आइना मेरी नज़र के सामने रख दिया और एकाएक ही वरुण और छोटू मेरे सामने आ गए।
एक छोटू जो अपने घर की जिम्मेदारी उठाने के लिए, अपनी बीमार माँ को सहारा देने के लिए चाय की दूकान पर काम करता है। एक वरुण जो किसी डायरेक्टर के यहाँ काम करता है।
एक छोटू जो मजबूर है, मगर खुश है। एक वरुण जिसे मजबूर किया हैं उसके माँ-बाप ने।
एक छोटू जिसका झोपड़ भी राजमहल जैसा लगता हैं, और वह खुद किसी राजा जैसा। एक वरुण जिसका आलिशान घर उस झोपड़ के सामने पानी भरता नज़र आता हैं।
एक छोटू जिसको मजबूरियों के चलते पढाई छोड़नी पड़ी। वरुण के माँ-बाप ने पैसों के लिए उसका स्कूल छुडवा दिया।

और जो शर्मा जी खुद अपने बेटे से किसी डायरेक्टर के यहा बाल-मजदूरी करवाते हैं। (बच्चा चाइल्ड आर्टिस्ट हैं मगर काम तो करता है ना)
वो शर्मा जी दूसरे बच्चों से उनका काम छीनने की मुहीम चला रहे हैं।

वाह शर्मा जी वाह।.... अरे वो कार ,आलिशान घर ,ये पैसा शर्मा जी ने अपने इसी बच्चे की मजदूरी से तो ख़रीदा हैं।
शर्मा जी कुछ करते तो है नहीं .... अपने बच्चे को मजदूरी पर भेज कर दुसरें बच्चों के घरो की रोटियाँ छीनते हैं।
शर्मा जी को क्या हक हैं.....?
आप बताइए किसी को भी क्या हक हैं..? किसी भी छोटू से उसका काम छीनने का।
क्या लगता हैं आपको यह नन्हे मुन्ने छोटू अपनी ख़ुशी से करते हैं काम..?

कभी सोचना कितनी बदनसीब होती है वो माँ, जिसे मज़बूरी के चलते अपने बेटे के हाथो में खिलोने की जगह चाय के कप पकड़ाने पड़ते हैं।
क्या गुज़रती होंगी उस माँ पर जिसे अपनी नन्ही सी बेटी से दूसरों के घरों के बर्तन धुलवाने पड़ते हैं।
कभी सोचा है आपने...? अगर नहीं तो आज सोच लीजिये।

तरश आता है मुझे अपने देश पर।
गरीब का बच्चा काम करे तो बाल–मजदूर।
अमीर का बच्चा काम करे तो बाल–कलाकार।

अरे कलाकार तो हर वो छोटू है,जो जिन्दगी के इस सर्कस में अपनी कला से अपने परिवार को पाल रहा हैं।
तो अब बंद करिए ये बाल–श्रम के नाम पर इन मजबूर बच्चों से उनकी दो वक़्त की रोटी छीनने का गन्दा खेल।
वो मजबूर है,मगर मजबूत हैं।

भारत का हर छोटू अपने पिता का अक्श होता है।
भारत का हर छोटू अपनी माँ का सहारा होता है।
हर छोटू में छिपी होती एक अपनी बहन को एक अच्छा जीवन देने की चाह।
हर छोटू के पास होता हैं जिन्दगी का एक बड़ा तज़ुर्वा।

और कोई छोटू कभी खुद के लिए नहीं जीता।
अपने परिवार के लिए अपनी खुशियों,अपने जीवन की कुर्वानी देने वालें ऐसे हर छोटू को मेरा कोटि –कोटि नमन।

लेखक-संकल्प जैन

Comments

  1. Ye jo dukano ke chotu hote hain na.. apne ghar ke bade hote hain...

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular Posts