बेचैनी

जब मेरी आँखे रोती है।
जब मेरा दिल तड़पता हैं।
तुम्हें नहीं होता दर्द ज़रा भी
क्यों...? अरे यही तो मौहब्बत है न..
चलो मान लेते है तुम्हे दर्द होता है।
मेरे आँशुओ में तुम भी रोती हो
मगर बताओगी नहीं तो एहसास कैसे होगा
जब तुम अपने नए जीवन साथी को दे रही हो हक़ मेरे...

मजबूरी का नाम लेकर छोड़ दिया तुमने मुझे...
माना मजबूर हो तुम
ये भी मज़बूरी है क्या....?
मेरे सारे हक़ उसे देना
में रोता रहू तुम्हे फर्क ना पड़ना
में कॉल करता रहू
तुम्हारा उससे लगातार बात करना
ये भी मज़बूरी है क्या...?

गज़ब मज़बूरी है तुम्हारी
अज़ब प्यार है मेरा....
तेरी मज़बूरी से फिर से मौहोब्बत हो गयी है।
-ब्लेंक राइटर

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