कोरोना और क़ुदरत
यह चंद दिनो की क़ैद , खुल जाएगी चंद दिनो बाद
हाँ खुल जाएगा यह सारा जहान ,हम सभी के लिए
साथ ही फिर से होगी क़ैद उन सभी पंछियो को
जो जी रहे है फ़िलहाल ,मर जायेंगे कुछ दिनो बाद
यह बंद दुकाने खुल जाएगी, सड़को पर हलचल बढ़ जाएगी
यह थमी हुई दुनिया चलने को बेताब है।
फिर खाएँगे मनुष्य पशु ,पंछियो को कुछ ही दिनो बाद
फिर यह ख़ूबसूरत दुनिया मानव स्वार्थ की बलि चढ़ जाएगी।
पर यक़ीं मानो यह क़ुदरत ,भर रही है अपने ज़ख़्मों को
जो दिए है हमने इसे पिछले कई दशकों में
पर क्या यह चंद दिन काफ़ी है इस क़ुदरत के लिए
स्वार्थ में अंधी इस समाज ने दिए है ना जाने कितने ज़ख़्म
क्या जलाए हुए जंगल हो पायेंगे हरे-भरे ?
हम अभी भी कर रहे कोशिश ,सिर्फ़ बचाने अपनो को
हो जाएगी यह तमाम कोशिशें मुकम्मल ख़ुदको बचाने की
हो जाएगा सब कुछ वैसा ,चाहते है हम जैसा
वहीं भाग-दोड़ , ख़ून -ख़राबा, सड़कों पर भागती जिंदगी
और औरतों की फिर वही जंग , अपनी इज़्ज़त बचाने की
क़ानून भी तो था दुनिया में ,पुलिस भी थी
थे तमाम मानवता और क़ुदरत को बचाने वाले
गीता ,क़ुरान और ग्रंथ तमाम ,थे हमें समझाने के वाले
कि हम कर रहे थे ग़लत क़ुदरत के साथ , हाँ बहुत ग़लत
और थे सभी मज़हबो के ईश्वर, अल्लाह ,हमें बतलाने वाले
थे पंडित,मौलबी भी यहाँ हम सभी को डराने वाले
हम ना समझे फिर भी कभी ,ना सोचा इस क़ुदरत के लिए
तो फिर कोरोना का डर ही बेहतर है हम सभी के लिए ।
पर इस सब के बाद भी यक़ीं मानो मेरे दोस्त
यह चंद दिनो की क़ैद , खुल जाएगी चंद दिनो बाद।
-ब्लेंक़ राइटर
Comments
Post a Comment