रिश्ते
ज़िन्दगी में कुछ रिश्ते बेवज़ह ही बन जाते है ।
कुछ रिश्ते जिनका कोई नाम नहीं होता कोई पहचान नहीं होती कोई आकार नहीं होता।
या तो वो रिश्ते पल भर में ही अपनी उम्र पूरी कर लेते है।
या सारी उम्र उन रिश्तो के लिए पल भर के समान होती है।
इन रिश्तो को बेवज़ह कहना शायद सही नहीं होगा
कोई वजह ज़रूर होती होगी वरना ऐसे ही कोई इतना ख़ास नहीं बन जाता।
कुछ रिश्ते जो बहुत नाज़ुक होते है।जिन्हें किसी दायरे में समेटा नहीं जा सकता जो शीशे की तरह नाज़ुक ,चट्टानों की तरह मज़बूत,चाँद की तरह ख़ूबसूरत और गँगा की तरह पवित्र होते है।
जिन्हें बहुत सम्हाल कर रखना पड़ता है।
ये रिश्ते मेहँदी की तरह गहराते जाते है।
और हमारा रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है।
ब्लेंक राइटर
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