तस्करी

ना ज़मीं ख़ुद की है,न ख़ुदका है आसमान…
ना कोई सपना उन आँखों में, ना ख़्वाबों का कोई निसां'


जिस्म,बचपन ,रूह बिकती है चंद हज़ारों में
मानवता नंगी नाचती है बीच बाज़ारों में


हर गली ,शहर बिक रही है औरतें
देश तरक़्क़ी कर रहा है सिर्फ़ अख़बारों में
-ब्लेंक राइटर

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