ख़्वाब
मुझे मालूम है तुम पूर्ण हो , तुम्हें किसी और की ज़रूरत नहीं ख़ुदको पूरा करने के लिए। गर होती ज़रूरत तो उस लाखों की भीड़ में से तुम चुन लेती किसी एक को , जो भीड़ दावा करती है तुम्हें चाहने का।
मुझसे पहले और मेरे बाद भी यह भीड़ बढ़ती ही जाएगी।
मुझसे पहले और मेरे बाद भी यह भीड़ बढ़ती ही जाएगी।
फ़क़त मुझे इस भीड़ का हिस्सा नहीं बनना , ना ही तुम्हारा सहारा बनना है क्यूँकि मैं जानता हूँ ....
‘सहारों के मोहताज वो होते है जिनमे जान नहीं होती
दूसरों के पंखो से कभी , आसमाँ में उड़ान नहीं होती’
और तुम इस नीले अंबर में सबसे कुशल पंछी हो।
तो फिर सवाल है कि मैं क्या चाहता हूँ?
मुझे बनना है तुम्हारा आइना जो कभी तुमसे झूठ ना बोलता हो, मुझे बनना है तुम्हारे अंदर छुपी हुई ‘तुम’।
यानि की मैं ‘तुम’ हो जाना चाहता हूँ।
क्यूँकि तुमसे बेहतर कुछ भी नहीं।
तुम मेरे लिए सबसे ख़ूबसूरत स्त्री हो , और यह सत्य कभी बदलेगा नहीं।
और हाँ किसी एक ख़ूबसूरत दिन मैं यह सब कह सकूँ तुम्हारे सामने और तुम फिर तुम मुस्कुरा दो, बस एक यहीं ख़्वाब मुकम्मल हो जाए मतलब की तुमसे एक हसीं मुलाक़ात हो जाए।
मैं,मेरी बालकनी और एक ख़ूबसूरत शाम इंतज़ार में है तुम्हारे...
और हाँ उस रात मिरी बालकनी में जो चाँद मेरे क़रीब होगा उस चाँद के सामने आसमाँ का चाँद शर्म के मारे कहीं डूब मरेगा...।
-संकल्प
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