Philosophy, Science and Religion


इस विचार से कि स्वर्ग हमारे माता-पिता के चरणों में है से लेकर इस खोज तक कि मंगल ग्रह पर जीवन हो सकता है, हम मनुष्यों की यात्रा में असंख्य जिज्ञासाएँ शामिल हैं।
 धरती पर  जीवन की शुरूआत लगभग 4 अरब वर्ष पहले हुई थी . हम मनुष्यों की वर्तमान प्रजाति का जन्म 3.5 लाख वर्ष पूर्व का माना जाता है. इसका पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने समय समय पर कई अध्ययन किये और यह पाया गया कि मानव प्रजाति के विकास के इतिहास में दक्षिण अफ्रीका क्षेत्र का अहम योगदान रहा है। वक़्त के साथ विकास करना ही मनुष्य होने का सबसे बड़ा प्रमाण है. परन्तु याद रखने लायक बात यह है कि विकास मानसिक हो तो ही बेहतर है , शारीरिक विकास तो गधों का भी हो ही रहा है. जबकि गधा जानवर प्रजाति का जीव है. इस धरती पर एक लाख करोड़ प्रजातियों में से एक हम मनुष्यों  को सबसे बेहतर इसीलिए माना गया है कि हम सोच सकते है , अपनी मस्तिक का प्रयोग करके इस संसार को कुछ दे सकते है . वह 'कुछ ' कुछ भी हो सकता है. कोई खोज या कोई सोच जो दुनिया के काम आ सके , जो दुनिया को एक बेहतर दुनिया बना सके. हमें दुनिया , देश , परिवार , दोस्त इन सब से क्या मिला ये हमारी नियति तय करती है , परन्तु हम इन इन सभी को क्या दे पाए , यहीं आपके जीवन का सबसे खूबसूरत हासिल है.

होमो- सेपियंस से इंसान  बनने का सफ़र ही जिन्दगी है और इसी बात पर दुनिया के हर धर्म टिका है . धर्म हमें बेहतर इंसान बनना सिखाता है . तो यदि आप दुनिया के सभी लोगो से प्यार करते है, दुसरो की तकलीफों से आपको भी दर्द होता है, किसी के आंशुओं को आप अपनी आँखों मे महसूस कर सकते है तो आपको धर्म की ज़रुरत नहीं.  स्वयं कि खोज ही धर्म है और स्वयं को खोजने का सबसे बेहतर तरीका है कि स्वयं को मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दो. हम इंसानों ने अपने अपने विश्वासों के अनुसार अपने अपने लिए धर्म खोज लिए है. और हर धर्म के पास अपनी अपनी कहानिया है . धर्म के नाम पर इंसान कभी कभी मुर्खता की  चरम सीमा से भी आगे  निकल जाता है. किसी को मार देने भी भावना को भी मनुष्य धर्म से जोड़ देता है. समय समय पर मूर्खों ने इस भावना मे बह कर धर्मों को बदनाम किया है. ओसामा बिन लादेन ने लाखों लोगो कि जान ली और कहा कि ये उसने धर्म के लिए किया , 1984 दंगे हो या 2002 इन सभी मौकों को धर्मों की  मूल भावना को तार तार किया गया है . जबकि मानव कल्याण की महान भावना ही धर्म है. संसार का हित करना धर्म है.

अमेरिका के महान  शिक्षाशास्त्री, दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक जॉन डीवि ने इस क्षेत्र मे बेहद काम किया है. उनके समूचे जीवन का लब्बोलुआब यह है कि किसी महान लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्दता ही धर्म है. और हर धर्म  के अनुसार महान लक्ष्य सिर्फ मानव कल्याण है . भारत के  प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने जॉन डीवि से बहुत कुछ सीखा जिसके परिणाम स्वरूप ही भारत मे शिक्षा के क्षेत्र मे पंडित जी का योगदान अतुल्य है. नेहरु जी की  किताब " भारत की खोज" आपको ज़रूर पढनी चाहिए. समाज के हित और बेहतरी के लिए समय और पैसा दोनों खर्च न करने वाला इंसान धर्म के लिए समय, पैसा, और जान भी दे सकता है . जबकि धर्म यह कह ही नहीं रहा कि उसके लिए कुछ किया जाए.  किसी भी धर्म के संस्थापक ने कभी यह नहीं कहा कि उनकी पूजा की  जाए. सच तो यह है कि हमने कभी धर्म को समझा ही नहीं . मेरे चाचा कहा करते हैं कि जिन्दगी दूसरों के लिए जियो , सिर्फ स्वयं  के लिए जिए तो क्या जीये. हमें अपने इस संसार को बेहतर बनाना है . हम मनुष्यों ने ना जाने क्यूँ ये सरहदे खीच दी , ना जाने क यूँ नफरते आज इतनी बढ़ गयी है कि दुनिया के एक कोने में अपने घर मे मस्त टीवी देखता हुआ एक आदमी मन ही मन यह सोचता है कि एक दूसरा देश और और दुसरा  धर्म बर्बाद हो जाए , उस देश और धर्म मे मर रहे लोगों के मरने से उसे ख़ुशी मिलती है , जबकि उसे इस बात का इल्म भी नहीं कि उस स्तिथि मे वह आदमी इंसान तो रहा ही नहीं वह दानव बन चूका है . क्या उस दुसरे देश और धर्म  के लोगो को सिर्फ इसीलिए मर जाना चाहिए क्यूंकि वो उस देश मे पैदा हुए , किसी अलग धर्म को मानते हैं  ? यदि आपका जवाब हाँ है तो आप को भी मर जाना चाहिए क्यूंकि जो इंसान किसी और की मौत की दुआ करे तो उसे जीने का कोई हक नहीं.

धर्म , विज्ञान , दर्शन इन सभी के अनुसार स्वयं की खोज ही जीवन का उददेश होना चाहिए । धर्म और दर्शन मानवता ,प्रेम , जीव कल्याण के उपदेश  देकर अपना काम कर रहा है विज्ञान इस संसार और हमारे लिए  नयी नयी खोजे करके अपना काम कर रहा है. और हम , हम क्या कर रहे हैं? किसी और कि मौत की दुआ, नफरत और न जाने क्या क्या चल रहा है धर्म की आड़ में . अब वक़्त आ गया है कि हमें खुद से सवाल करना होगा कि यह जीवन हमें क्यूँ  मिला है. हमें धर्म के फर्जी ठेकेदारों के चंगुल से खुद को बहार निकालना होगा क्यूंकि इन ठेकेदारों ने मनुष्यों के जवाब तलाशने के गुण के साथ साथ सवाल पूछने के  स्वभाव को भी मार दिया है. सोचिये अगर सवाल नहीं पूछे गए होते तो क्या यह दुनिया तरक्की कर पाती? असल मे मूर्खों के लिए दुनिया के सबसे कठिन सवालों का सबसे आसन जवाब ही धर्म है. जबकि धर्म सबसे महान है परन्तु उसके कुछ ठेकेदारों ने मूल भावना को अपने हित के लिए बदल दिया है. धर्म के ठेकेदारों ने हर दौर में खुदको खुदा माना है। वह भूल जाते हैं कि ब्रह्मांड में अनगिनत गैलेक्सी है उनमें से एक गैलेक्सी मिल्की वे के अंदर असंख्य तारो में से एक छोटे से तारे का नाम सूर्य है . और 9 ग्रह उस सूर्य का चक्कर लगाते है. उन  9 ग्रहों में से एक ग्रह प्रथ्वी जिसपे एक लाख करोड़ अलग अलग प्रजातियां है. जिनमे से एक प्रजाति है हम इंसानों की. और हम इंसानों की कुल जनसंख्या 800 करोड़ में से एक है वह.  इतनी तुच्छ सी औकात है उनकी. हमें अब खुद को बदलना होगा धर्म को मानने कि वजह धर्म की मानना होगा. और हर धर्म कहता है "जियो और जीने दो"

दर्शन , विज्ञान और धर्म .....

आप किस रास्ते के मुसाफिर है? क्या मेरा लेख आपके लिए उपयोगी साबित हुआ ?  कमेंट मे ज़रूर बताइयेगा .

-संकल्प जैन 

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From the idea that heaven lies at the feet of our parents to the discovery that there could be life on Mars, the journey of us humans includes a myriad of curiosities. Life on Earth began about 4 billion years ago. The birth of the present species of us humans is believed to be 3.5 lakh years ago. To find out, scientists have done many studies from time to time and it has been found that the region of South Africa has played an important role in the history of human development. Growing with time is the biggest proof of being human. But the thing to remember is that it is good if there is mental development, the physical development of donkeys is also happening. While donkey is an animal species. We humans are considered the best among a trillion species on this earth because we can think, use our mind and give back to this world. That 'something' can be anything. Any discovery or any idea that can be useful to the world, that can make the world a better world. Our destiny is decided by what we have received from the world, country, family, friends, but what we can give to all of them is the most beautiful achievement of your life.

Life is the journey of becoming human from homo-sapiens and every religion of the world is based on this. Religion teaches us to be better human beings. So if you love all the people of the world, you are also pained by the problems of others, you can feel someone's tears in your eyes, then you do not need religion. Self-discovery is religion and the best way to find yourself is to dedicate yourself to the welfare of mankind. We humans have found our own religion according to our beliefs. And every religion has its own stories. In the name of religion, man sometimes goes beyond the limits of stupidity. Man connects even the feeling of killing someone with religion. From time to time, fools have defamed religions by getting carried away by this feeling. Osama bin Laden killed millions of people and said that he did it for religion, be it 1984 riots or 2002, all these occasions have been wired to the basic spirit of religions. While the great feeling of human welfare is religion. To do good to the world is religion.

America's great educationist, philosopher and psychologist John Dewey has done a lot of work in this field. The bottom line of his entire life is that commitment to a great goal is religion. And according to every religion the great goal is just human welfare. India's first Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru learned a lot from John Dewey, as a result of which Panditji's contribution in the field of education in India is incredible. You must read Nehru ji's book "Discovery of India". A person who does not spend both time and money for the benefit and betterment of the society can give time, money and life for religion. While religion is not saying that something should be done for it. The founder of any religion never said that he should be worshipped. The truth is that we have never understood religion at all. My uncle used to say that live life for others, if you live only for yourself then what to live. We have to make this world of ours better. 

Don't know why we humans have drawn these boundaries, don't know why hatred has increased so much today that in one corner of the world a man watching TV engrossed in his house thinks in his mind that another country and another religion He gets pleasure from the death of the people who are dying in that country and religion, while he does not even know that in that situation that man is no longer a human being, he has become a demon. Should the people of that other country and religion die just because they were born in that country and follow a different religion? If your answer is yes then you should also die because the person who prays for someone else's death has no right to live.

According to religion, science and philosophy, self-discovery should be the goal of life. Religion and philosophy are doing their work by preaching humanity, love, welfare of the creatures, science is doing its work by making new discoveries for this world and for us. And we, what are we doing? Don't know what is happening under the guise of praying for someone else's death, hatred and religion. Now the time has come that we have to question ourselves why we have got this life. We have to break free from the clutches of fake contractors of religion because these contractors have killed the nature of asking questions as well as the quality of man to seek answers. 

Think if the questions were not asked, would this world have progressed? Indeed, religion is the easiest answer to the world's most difficult questions for fools. While religion is the biggest but some of its contractors have changed the basic spirit for their own benefit. The contractors of religion have considered themselves to be God in every age. They forget that there are innumerable galaxies in the universe, one of them is the name of the Sun, a small star among the innumerable stars inside the Milky Way Galaxy. And 9 planets revolve around that Sun. One of those 9 planets is planet Earth which has one lakh crore different species. One of which is the human species. And we humans are one of the total population of 800 crores. His position is so low. We have to change ourselves now, the reason for following Dharma will be to follow Dharma. And every religion says "live and let live".

Philosophy, Science and Religion...

Which way are you traveling? Was my article helpful to you? Will definitely tell in the comments.

-Sankalp Jain


 


Comments

  1. Fantastic 👍👍👍

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  2. जियो और जीने दो - महावीर स्वामी जी द्वारा बहुत पहले दिया जा चुका है पर ये संसार मानता नहीं उसकी एक बड़ी वजह कि वो जानता ही नहीं है। जीवन का मूल उद्देश्य।।
    संकल्प भाई बहुत अच्छा लिखा है।

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  3. One should get influenced by the real term of Dharma not by the personal view of Dharma Pracharak

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