विचार जो धर्म "भी" है और कर्म भी।


इंसान से भगवान बनने का सफर विचारों और संस्कारों की जंग के बीच से ही होकर गुजरता है। महवीर, गौतम बुद्ध , श्री राम और इस युग में आचार्य श्री इन सभी ने आम इंसान से भगवान तक का सफर अपने विचारो से तय किया। देखा जाए तो अंतिम सत्य सिर्फ विचार ही है। ऐसा कहते भी है कि "ईश्वर को मत मानो, ईश्वर की मानो" , तात्पर्य  यह हुआ कि उनके विचारो को अपनाओ। हरेक धर्म में यही कहा गया है कि अच्छे कर्म करो। परंतु यहां पर द्वंद जैसी स्तिथि पैदा होती है। यह कौन निर्धारित करेगा कि क्या अच्छा है क्या बुरा। अलग अलग समय पर अलग अलग दर्शनों  में इसपर विमर्श हो चुका है। जैन में मांस ,मदिरा , चोरी पाप है परंतु चार्वाक दर्शन के अनुसार सब सही है। 

मैं नॉन वेज नहीं खाता , यह मेरा संस्कार भी है और विचार भी। जैन धर्म  और दर्शन भारत के उन दर्शनों में से एक है , जो विचारो को ही अंतिम सत्य मानते है। मेरा विचार ही मेरी पहचान होगा। यानी कि आपके अंदर जो विचार आ गया वह उतना ही सत्य है जितना सत्य उस विचार का कर्म में बदलना या ना बदलना। पाप और पुण्य के विचार और कर्म एक बराबर है। जैन दर्शन "मैं" से मोक्ष का मार्ग है। 

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जब वर्ण व्यवस्था ने समाज को जन्म के आधार पर 4 वर्गों में विभाजित किया, जहाँ दो उच्च वर्गों को कई विशेषाधिकार प्राप्त थे। उस वक्त कर्म काण्ड( ब्राम्हण परंपरा) के विरोध में ही (श्रावण परम्परा) यानी कि जैन दर्शन का जन्म हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य मुक्ति की प्राप्ति है, जिसके लिये किसी अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती है। इसे तीन सिद्धांतों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है जिसे थ्री ज्वेल्स या त्रिरत्न कहा जाता है, सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान, सम्यकचरित।

कुल मिलाकर सत्य यह है कि जैन धर्म पूर्णत कर्मप्रधान है। जैन धर्म भगवान को नहीं मानता। कर्म (शुभ कर्म) ही धर्म है। जैन दर्शन कहता है कि कर्म ही संसार का आधार हैं। शुभ कर्म से ही जिन (जिनेन्द्र) तक का सफर ही जिंदगी है। और हम सभी ने जिनेन्द्र बनने के लिए ही यह जन्म लिया है। अनंत को मानने वाले जैन धर्म के अनुसार हर एक इंसान अनंत हो सकता है। अनंत दर्शन कहता है कि इंसान की शक्तियों का कोई अंत नहीं है। स्वयं को पा लेने के बाद ही इंसान त्रिकालदर्शी हो सकता है।

अनंत ज्ञान कहता है कि दुनिया का सारा ज्ञान  प्राप्त कर लेने की इच्छा ही मनुष्य को अनंतानंत बना सकती है। और यहीं वो तरीका है जिससे आप जिनेन्द्र बन सकते हैं। हमारा ज्ञान परम सत्य नहीं हो सकता। 

स्यादबाद जैन दर्शन का सबसे खूबसूरत और महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं । जिसे पूरी दुनिया ने माना और सराहा। 
पूर्ण ज्ञान को नकारने वाला यह सिद्धांत कहता है कि हर ज्ञान "भी" में समाया हुआ है। और सारा क्लेश  "ही" के कारण है। उदाहरण के लिए जमीन पर 6 अंक लिखिए , जो इंसान इस तरफ खड़ा होगा वहा कहेगा यह 6 है। और उस तरफ वाला कहेगा 9 है।  दोनो सही हुए अर्थात यह अंक 6 भी है और 9 भी।  अगर कोई कहे कि यह सिर्फ 
6 "ही" है तो वह मूर्ख हुआ। बुद्धिमान इंसान कहेगा कि यह 6 " भी" है और 9 "भी"। अहिंसा परमो धर्म की बात करने वाला जैन धर्म 5 महाव्रत  की बात कहता हैं। अहिंसा, अपरिग्रह, व्रम्हच्रय, सत्य, अस्तेय।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया के सबने महान इंसानों में से एक गांधी जी का तमाम दर्शन और जीवन जैन दर्शन के अपरिग्रह पर आधारित था। जिसका मतलब है कि अपनी आवश्कता ने अधिक जमा करने पाप है। और ना ही हम किसी भी चीज के मालिक है, जो भी हमारे पास है हम उसके न्यासधार है ना कि मालिक। साथ ही जैन दर्शन के अनुसार नमोकार महामंत्र ही मैं से मोक्ष के सफर में हमारा साथी है। अरि (शत्रु) का नाश करने वाला ही अरिहंत है। यहां अरि से तात्पर्य आंतरिक 5 शत्रुओ (काम, क्रोध, मद , लोभ, राग) से है।

इसलिए हम कहते है।

"नमो अरिहंताणं"

- संकल्प जैन

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