साहिर , अमृता और इमरोज़


1958 में वियतनाम के ताकतवर राष्ट्रपति हो ची मिन्ह ,जिन्होंने अमरीका को धूल चटाई थी,  भारत दौरे पर थे. एक सम्मेलन में उन्होंने अमृता का माथा चूमते हुए कहा, "हम दोनों सिपाही हैं. तुम कलम से लड़ती हो, मैं तलवार से लड़ता हूँ."

1919 में गुंजरावाला जो अब पाकिस्तान में है, वहा अमृता का जन्म हुआ। 6 वर्ष की थी तब ही एक व्यापारी से शादी हो गई। 16 वर्ष की थी तब पहली किताब छप कर सामने आ चुकी थी।
1944 में लाहौर के एक मुशायरे में पहली बार अमृता और साहिर की मुलाकात हुई। और फिर दोस्ती...और फिर प्यार।
फिर हुआ बंटवारा, भारत पाक का और इन दोनो का भी।

साहिर आए पाक के हिस्से और अमृता अपने पति के साथ दिल्ली आ गई। तब तक अमृता दो बच्चो की मां बन चुकी थी। और साहिर एक कामयाब गीतकार हो गए थे। और वह भी काम के कारण लाहौर से मुंबई आ गए थे। दोनो की साहिर कभी दुनिया के सामने अपनी मौहब्बत कबूल ना कर सके । कुछ सालो बाद अमृता ने तलाक ले लिया। और किराए से दिल्ली में ही रहने लगी। 1958 में उनकी मुलाकात इमरोज से हुई।  वक्त बिता दोस्ती हुई और इमरोज को अमृता से मौहब्बत। इमरोज बेहद नामी चित्रकार थे। दोनो का वक्त साथ बीतने लगा।
अमृता रात भर शायरी लिखती। इमरोज दिन भर चित्रकारी करते।
इमरोज अमृता को बेहद चाहते थे. अमृता प्रीतम को रात के समय लिखना पसंद था और इसलिए इमरोज लगातार कई सालो तक रात के एक बजे उठ कर उनके लिए चाय बना कर चुपचाप उनके आगे रख देते थे.

हालांकि आखिर तक अमृता इमरोज की बेपनाह मौहब्बत
से वाकिफ होते हुए भी साहिर को न भुला सकीं. एक बार बीबीसी उर्दू को इमरोज ने एक इंटरव्यू में कहा था,''अमृता की उंगलियां हमेशा कुछ न कुछ लिखती रहती थीं. चाहे उनके हाथ में कलम हो या न हो. उन्होंने कई बार पीछे बैठे हुए मेरी पीठ पर उंगलियों से साहिर का नाम लिख दिया. लेकिन फ़र्क क्या पड़ता है. वो उन्हें चाहती हैं तो चाहती हैं. मैं भी उन्हें चाहता हूं."
अमृता को साहिर से मिलवाने के लिए इमरोज अपने स्कूटर पर ले जाते थे। 

अमृता और साहिर का रिश्ता किसी अंजाम तक न पहुंचा. साहिर का सबसे खुबसूरत  शेर अमृता के लिए ही था ।
"वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन 
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा "

साहिर अमृता को बेहद चाहते थे
अमृता ने साहिर के नाम जो नज्म लिखी उस नज़्म को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। अमृता के खतों को साहिर सीने से लगाकर घूमा करते थे। साहिर सभी को बताते फिरते कि अमृता ने उनके नाम खत लिखे हैं, नज्म लिखी है। मगर अमृता को यह अफ़सोस रहा कि उनकी नज्म, उनके खत पढ़कर भी साहिर की खामोशी नहीं टूटी। साहिर अंत तक अकेले रहे और अकेले ही  इस दुनिया से चले गए

अमृता और इमरोज़ भी ताउम्र साथ एक छत के नीचे रहे लेकिन समाज के कायदों के अनुसार कभी शादी नहीं की.ना ही एक दूजे को छुआ।

इमरोज़ अमृता से कहा करते थे- तू ही मेरा समाज है.
मौहब्बत लिखने वाली अमृता को भी किसी से इश्क़ हुआ और किसी और को भी अमृता से इश्क़ हुआ लेकिन इश्क़ के इतने पास होते हुए भी अमृता ताउम्र उसके लिए तरसती रहीं. 

अमृता ने साहिर से प्यार किया और इमरोज ने अमृता से और फिर इन तीनों ने मिलकर इश्क की वह दास्तां लिखी जो अधूरी होते हुए भी पूरी थी.

 अमृता प्रीतम का निधन हो चुका है पर  इमरोज़ आज भी कहते हैं कि “ हम दोनों आज भी उन अनुपम क्षणों को जी रहे हैं । मेरे बीच  अमृता आज भी  ज़िंदा है ।” 

मैं जब भी कुछ पढ़ता हूँ तो जब कुछ  ऐसा मिलता है जो जिंदगी जीने में मदद करता है तो उसे साझा करना चाहता हूँ । विगत वर्षों में मेरे बीच  के तमाम अपनों के अज़ीज़ अलविदा कर गए । उनसे मुझे यही कहना है कि वो उन प्यारे क्षणों को जिये जो उन्होने जाने वाले प्रिय के साथ बिताये थे , चाहे वे बेटी बेटा रहे हो या पति पत्नी । इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता भी क्या है ? 

अमृता और साहिर , अमृता और इमरोज के सम्बंधों को पढ़कर लगता है , प्यार बहुत ही ताकतवर होता है । फ़िराक़ ने सही कहा है - 
इश्क़ तौफ़ीक़ है , गुनाह नहीं ।
 
अमृता जब इमरोज से 1959 में  मिली , वह दो बच्चों की माँ थी , सात  साल बड़ी थी , नाख़ुश शादी शुदा ज़िंदगी जी रही थी , साहिर लुधियानवी से प्रेम करती थी। इमरोज़ कुंवारे  और एक उभरते चित्रकार थे । अमृता और इमरोज़ अपनी ही दुनिया के  रंगों , शब्दों और कविताओं के बीच जीते रहे । 

अमृता ने जिंदगी मे बहुत  कुछ सहा. कम उम्र में मां की मृत्यु, घुटन भरी शादी, साहिर को न पाने का दर्द और इमरोज को हां न कह पाने की कसक, अमृता की जिंदगी से दुखों का खास रिश्ता रहा और शायद यही कारण है कि उन्होंने जो भी लिखा वो लोगों के दिलों तक सीधा पहुंचा.....

अमृता ने लिखा था....
मैं तैनू फ़िर मिलांगी
कित्थे ? किस तरह पता नई
शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के
तेरे केनवास ते उतरांगी
जा खोरे तेरे केनवास दे उत्ते
इक रह्स्म्यी लकीर बण के 
खामोश तैनू तक्दी रवांगी...

कहते है कि अगर एक शायर आपका महबूब है तो आप अमर हो जाएंगे।
अमृता , साहिर और इमरोज़ अमर हो गए....।

❤️

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