आधुनिक भारत के जनक बाबासाहेब अंबेडकर
"रात और दिन कभी भी महिलाओं को स्वतंत्र नहीं होने देना चाहिए। उन्हें लैंगिक संबंधों द्वारा हमेशा वश में रखना चाहिए। बचपन में पिता, युवा अवस्था में पति और बुढ़ापे में पुत्र उनकी रक्षा करे क्योंकि स्त्री स्वतंत्र होने के लायक नहीं हैं"
- मनु स्मृति (अध्याय 9)
अरस्तू से लेकर मनु तक ने महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक माना है यानी की पुरुषों से नीचे। इतिहास में महिलाएं हमेशा अपने अधिकारों से वंचित रही, हमेशा ही उनके साथ शोषण हुआ। मगर एक इंसान जिसने भारत की महिलाओं की दिशा और दशा दोनो बदल दी। नाम था बाबासाहेब डॉक्टर भीम राव रामजी अंबेडकर। हम बाबासाहेब को संविधान निर्माता एवं दलितों, शोषितों और वंचितों के मसीहा के रूप में जानते है। मगर कम ही लोगों को यह मालूम होगा कि महिलाओं के लिए बाबासाहेब ने अकेले जितना किया उसका आधा भी बाकी पूरा भारत नहीं कर पाया। अंबेडकर कहते थे शिक्षा शेरो का दूध है, जो पी लेता है वो दहाड़ता है। जाति, लिंग और धर्म निरपेक्ष संविधान के निर्माता बाबासाहेब यानी कि हर वो व्यक्ति जो अन्याय और शोषण के खिलाफ़ हो। वो जिसने शिक्षा को सबसे ऊपर रखा हो। वो जिसने अपनी शिक्षा और मेहनत की दम पर दुनिया जीती हो। अंबेडकर वो जिसने भारत की महिलाओं की जिंदगी बदल दी हो।
यूं तो अंबेडकर समूचे भारत निर्माण में अपने योगदान के लिए हमेशा याद रखे जाएंगे। परंतु हर भारतीय खासकर महिलाओं का यह कर्तव्य है कि वह बाबासाहेब की पूजा भगवान से भी पहले करे। बाबासाहेब ना होते तो आप वहां कभी न होती जहां आप है। अगर आज महिलाएं को शिक्षा से लेकर रोजगार में पुरुषों के बराबर अधिकार है तो इसका पूरा श्रेय बाबासाहेब को जाता है। बीसवीं शताब्दी में वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्राम्हण वादी पितृ सत्ता को खुली चुनौती दी, महिलाओं को शिक्षा और रोजगार का हक मिले यह उन्होंने ही सुनिश्चित किया,1942 ने मैटरनिटी बेनिफिट बिल लाकर उन्होंने कामकाजी महिलाओं के लिए मैटरनिटी लीव उन्होंने ही दिलवाई खास बात यह है कि उस ज़माने के सबसे आधुनिक मुल्क अमेरिका में भी मैटरनिटी लीव 1993 में अस्तित्व में आई, संविधान के आर्टिकल 14 से 16 में बाबासाहेब ने ही महिलाओं के लिए लैंगिक समानता को शामिल किया, महिलाओं की खरीद फरोख्त और शोषण के विरुद्ध बाबासाहेब ने ही कानून बनाए, महिला को 1951 के वक्त मताधिकार भी बाबासाहेब की देन है जबकि स्विजरलैंड जैसे देश में यह अधिकार महिलाओं को 1971 में मिला। बाबासाहेब ना होते तो "हिंदू कोड बिल" ना पारित होता। और अगर ऐसा न होता तो आज भी महिलाएं पुरुषों की गुलाम होती। महिलाओं को संपत्ति में अधिकार , एक विवाह का प्रावधान, पुरुषों के समान महिलाओं को भी नाखुश शादी में तलाक देने का अधिकार ( पहले सिर्फ पुरुष ही तलाक दे सकते थे) यह वह दौर था जब तलाकशुदा स्त्री मृत स्त्री से भी बत्तर मानी जाती थी। कट्टर हिंदू परंपराओं के अनुसार पिता के घर से लड़की की डोली उठेगी और पति के घर से अर्थी।, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद इस बिल के खिलाफ थे क्योंकि वह कट्टर हिंदूवादी थे । मगर बाबासाहेब की दूरदर्शिता के आगे उन्हें झुकना पड़ा और 1956 में यह बिल पास हुआ। बालविवाह और देवदासी जैसी प्रथाओं का अंत करने का श्रेय भी बाबासाहेब को जाता हैं ।
14 अप्रैल 1891 में मध्य प्रदेश के महू में महार (अछूत) परिवार में हुआ था। अम्बेडकर को बचपन से ही अस्पृश्यता से जूझना पड़ा। विद्यालय से लेकर नौकरी करने तक उनके साथ भेदभाव होता रहा। इस भेदभाव ने उनके मन को बहुत ठेस पहुंचाई। उन्होंने छूआछूत का समूल नाश करने की ठान ली। उन्होंने कहा कि जनजाति एवं दलित के लिए देश में एक भिन्न चुनाव प्रणाली होनी चाहिए। देशभर में घूम-घूम कर उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और लोगों को जागरूक किया। उन्होंने एक समाचार-पत्र ‘मूकनायक’ (लीडर ऑफ साइलेंट) शुरू किया। एक बार उनके भाषण से प्रभावित होकर कोल्हापुर के शासक ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया जिसकी देशभर में चर्चा हुई। इस घटना ने भारतीय राजनीति को एक नया आयाम दिया।
गीता , कुरान , बाइबल, जिनवाणी इन सबसे भी महान किताब " भारत का संविधान" के रचियता बाबा साहेब ने भारत के लिए अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया।
भारत के सबसे बुद्धिमान और शिक्षित व्यक्ति भीमराव के पास चार पीएचडी ( कोलंबिया युनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स और लॉ में , लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से इकोनॉमिक्स में , ओसमानिया युनिवर्सिटी से )अंबेडकर के नाम के साथ बीए, एमए, एम.एससी, पीएच.डी, बैरिस्टर, डीएससी आदि कुल 32 उपाधियां जुड़ी हैं.अम्बेडकर को कोलंबिया विश्वविद्यालय ने एल.एलडी और उस्मानिया विश्वविद्यालय ने डी. लिट् की मानद उपाधियों से सम्मानित किया था. वह 64 विषयों में मास्टर थे साथ ही उन्हें 9 भाषाओं का ज्ञान था।
उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में सिर्फ 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी कर ली थी। वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से "डॉक्टर ऑफ साइंस" नामक एक मूल्यवान डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति हैं। किताबों से उनका लगाव इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस वक्त उन्होंने प्राण त्याग, उस वक्त तक भारत में सबसे जादा और बेहतर किताबों का संग्रह उन्हीं के पास था। उनके पास लगभग 36000 किताबे थीं। उन्होंने स्वयं भी कई किताबे लिखी। जिनमे एनिहिलेशन ऑफ कास्ट, द अनटचेबल, बुद्ध और कार्ल मार्क्स, हू वर दी शुद्रा, कास्ट इन इंडिया, बुद्ध एंड हिज धम्म, दी प्राब्लम ऑफ रूपी एहम है।
अंबेडकर का सम्मान इसीलिए भी बढ़ जाता है कि इतना पढ़ लिखने के बाद और सब कुछ हासिल करने के बाद वह चाहते तो आराम की जिंदगी जी सकते थे यूरोप या लंदन में मगर उन्होंने भारत लौटकर देश के लिए अपना जीवन समर्पित किया। रोचक बात यह भी है कि गांधी जी और अंबेडकर के बीच हमेशा वैचारिक मदभेद रहें। अंबेडकर ने यह तक कहा था कि मैं गांधी को महात्मा नहीं मानता। अंबेडकर गांधी को अछूतों का हितैशी नहीं मानते थे। आज कल व्हाट्सएप युनिवर्सिटी के टिकिया चोट्टे अंबेडकर को गालियां देते हैं, जबकि वह सब उनके पेरो की धूल के समान भी नहीं हैं। आज भारत निर्माण के सबसे महत्वपूर्ण शिल्पकार भारत रत्न डॉक्टर भीमराव रामजी अंबेडकर का जन्मदिन है। अंबेडकर स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री थे। अंबेडकर ने भारत को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डाॅ अंबेडकर ने भारतीय समाज में दलित जातियों के प्रति स्वर्ण जातियों के भेदभाव को समाप्त करने का भरपूर प्रयास किया था. लेकिन वे स्वर्ण हिंदुओं का हृदय परिवर्तन ना कर सके. उल्टे बाबा साहब को निंदित किया गया तथा उन्हें हिंदू धर्म के विनाशक तक कह दिया गया. अतः 13 अक्टूबर 1935 को महाराष्ट्र के नासिक के निकट येवला में एक सम्मेलन में धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की. उस सम्मेलन में उन्होंने कहा कि "हालांकि मैं एक अछूत हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं लेकिन मैं एक हिंदू के रूप में हरगिज नहीं मरूंगा.”उनके इस घोषणा के बाद इस्लाम धर्म के निजाम और ईसाई मिशनरियों के द्वारा अपने-अपने धर्म में आने के लिए प्रलोभन दिये गये. परंतु अंबेडकर ने करोड़ों रुपए के प्रलोभनों को ठुकरा दिया. और कई वर्षों तक अलग-अलग धर्मों का अध्ययन किया. उन धर्मों में डॉ• आंबेडकर को बौद्ध धर्म की तीन बातों ने बहुत ही प्रभावित किया। बौद्ध धर्म प्रज्ञा
(अंधविश्वास तथा अति प्रकृतिवाद के स्थान पर बुद्धि का प्रयोग), करूणा (जीवों के प्रति प्रेम) और समता (सभी लोग समान अर्थात समता की बात) की शिक्षा। 21 वर्षो तक सभी धर्मो का अध्यन करने के बाद उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को अपनी मृत्यु से लगभग 2 माह पूर्व ही बाबासाहेब ने नासिक में एक सभा में अपनी पत्नी तथा अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया. इस सभा में उन्होंने कहा था कि "मैं बुद्ध के धम्म को सबसे अच्छा मानता हूं, इससे किसी धर्म की तुलना नहीं की जा सकती. यदि एक आधुनिक व्यक्ति जो विज्ञान को मानता है उसका धर्म कोई होना चाहिए तो वह केवल बौद्ध धर्म ही हो सकता है. सभी धर्मों के धनिष्ट अध्ययन के कई वर्षों के बाद बौद्ध धर्म के प्रति दृढ़ विश्वास मेरे अंदर बढ़ गया है.”। 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर महापरिनिर्वाण (मृत्यु) को प्राप्त हुए।
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