ज़िन्दगी

कभी धूप तो कभी छाव है ज़िन्दगी
दो पन्नों की क़िताब है ज़िन्दगी।
तुझे मोहब्बत की है हमेशा मैने
उसी मोहब्बत का हिसाब है ज़िन्दगी।
कभी धूप तो कभी छाव है ज़िन्दगी....

कोई सफ़र आसमां से परे
चलो मेरे संग बादलों से परे
उस जगह जिस जगह कोई दूरी ना हो
ज़िन्दगी तुम हो वहां साँस ज़रूरी ना हो
ना जाने कैसी है ये बंदगी
कभी धूप तो कभी छाव है ज़िंदगी

कभी जब नज़रे ढूँढे तुझको
भर लेना बाहों में तुम मुझको
जिस्म मेरा जले बिन तेरे न मिले
होश दिल को मेरे चैन मुझको
ना जाने कैसी है ये बंदगी
कभी धूप तो कभी छाव ये है ज़िंदगी
ब्लेंकराइटर

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