ग़ज़ल
आँखों में काजल लगाओगी क्या
ढ़लते सूरज को जलाओगी क्या ....
सूरज ढ़ल रहा है चाँद से मिलने
अब तुम मुझसे मिलने आओगी क्या
ला तो दूँ चाँद तुम्हारे आँचल मे में
फिर आसमां से चाँदनी तुम फेलाओगी क्या
भूल जाऊं में तुम्हे या कर दो कत्ल तुम मेरा
जैसे में जी रहा हूँ , एक पल वैसे तुम जी पाओगी क्या
गर मौत ही है वो जरिया तो मर भी जाऊं में
फिर मुझे अपने सीने से लगाओगी क्या
मेरी लाश पर रोना नहीं तुम
अरे रोकर खुदा को रुलाओगी क्या
तुम्हे पाना वो ख्वाब है जो मर कर भी पूरा न होगा
एक पल के लिए ही सही मुझे अपना बनाओगी क्या
मुझे चाहने के लिए वजह तलाशती हो
ऐसे मौहब्बत करोगी तो खुश रह पाओगी क्या...
-ब्लेंकराइटर
ढ़लते सूरज को जलाओगी क्या ....
सूरज ढ़ल रहा है चाँद से मिलने
अब तुम मुझसे मिलने आओगी क्या
ला तो दूँ चाँद तुम्हारे आँचल मे में
फिर आसमां से चाँदनी तुम फेलाओगी क्या
भूल जाऊं में तुम्हे या कर दो कत्ल तुम मेरा
जैसे में जी रहा हूँ , एक पल वैसे तुम जी पाओगी क्या
गर मौत ही है वो जरिया तो मर भी जाऊं में
फिर मुझे अपने सीने से लगाओगी क्या
मेरी लाश पर रोना नहीं तुम
अरे रोकर खुदा को रुलाओगी क्या
तुम्हे पाना वो ख्वाब है जो मर कर भी पूरा न होगा
एक पल के लिए ही सही मुझे अपना बनाओगी क्या
मुझे चाहने के लिए वजह तलाशती हो
ऐसे मौहब्बत करोगी तो खुश रह पाओगी क्या...
-ब्लेंकराइटर
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