शेर

कुछ अज़ब सा हाल अब हमारा है।
भीड़ में भी तन्हाई का सहारा है।
भबर में नाव कुछ इस तरह फस गयी है
ना साहिल है और ना किनारा है।
ब्लेंक राइटर

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