भोपाल गैस काण्ड

3 दिसम्बर 1984 का वो काला दिन भारत के ह्रदय को लहु लोहान कर गया। भारत के दिल को खून से रंग गया।

मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर मे 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए।
2-3 दिसम्बर की रात्रि को टैन्क इ-610 मे पानी का रिसाव हो जाने के कारण अत्यन्त ग्रीश्म व दबाव पैदा हो गया और टैन्क का अन्तरूनी तापमान 200 डिग्री के पार पहुच गया जिसके तत पश्चात इस विषैली गैस का रिसाव वातावरण मे हो गया। 45-50 मिनट के अन्तराल लगभग 30 मेट्रिक टन गैस का रिसाव हो गया।

भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। मरने वालों के अनुमान पर विभिन्न स्त्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता मिलती है। फिर भी पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 थी। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 की गैस से मरने वालों के रुप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 800 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे। 2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब 558,125सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने की संख्या लगभग 38,478 थी। 3900 तो बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये।

भोपाल गैस त्रासदी को लगातार मानवीय समुदाय और उसके पर्यावास को सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता रहा। इसीलिए 1993 में भोपाल की इस त्रासदी पर बनाए गये भोपाल-अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को इस त्रासदी के पर्यावरण और मानव समुदाय पर होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को जानने का काम सौंपा गया था।

यूनियन कार्बाइड एक ऐसा नाम, जिसके उच्चारण करते ही आज भी
लोग सहम जाते हैं। हज़ारों लोगों को मौत की नींद सुला देने वाला और हज़ारों को स्थाई अपंग कर देने वाला ये
हादसा आज भी लोगों के जिस्म से किसी न किसी विकार के रूप में चिपका
है।ये उस कारखाने की चूक थी.. सरकार की चूक थी.. या लोगों का नसीब ही
खोटा था..। इसकी मीमांसा का वक्त भी लोगों के पास नहीं बचा था उस वक्त। साल-दर-साल जख्म फिर हरे होते हैं, फिर कुछ दर्द, आह और सहानुभूति के स्वर
उभरते हैं और फिर एक लंबा मौन..।उस हाहाकार को
महसूस करिए..।
सोचिए कि एक जीता-जागता शहर कैसे श्मशान में तब्दील हो सकता है..।
हालांकि इस शहर के जज्बे को सलाम है..ये फिर उठ खड़ा हुआ..अब यहां
की आबो-हवा तो ताज़ी और खुशगवार है।और हमें गर्व है कि हम उस शहर के है।
हमें गर्व है कि हम भोपाली है।
जी हां हम सूरमा भोपाली है।
उम्मीद है कि अब दोबारा नहीं होगा ऐसा कोई हादसा।

ना दिल्ली से हूँ ना बंगाल से आया हूँ।
आप मिज़ोरम से हो क्या..? में ना इम्फ़ाल से आया हूँ।
मेरी पहचान को मेरी मिट्टी से जुड़ा रहने दो
में झीलों के शहर भोपाल से आया हूँ।
ब्लेंक राइटर

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