आखरी मुलाक़ात
मेरी मोहब्बत के जनाज़े में तुम भी शामिल होना।
मेरी मौत क्या मेरी ज़िन्दगी क्या...?
एक पल का वक़्त मिल जाए उस वक़्त
उस वक़्त बेवक़्त सा मौन किये हुए
में निकलू तेरी गली से
तुम छत पर आना
ज़रा सा मुस्कुराना
तुम आना मेरे पीछे
मेरे पीछे बहुत से लोग चल रहे होंगे
चार लोगों ने मुझे अपने कान्धे पर उठाया भी होंगे
जैसे तुम्हें उठाया था तम्हारी शादी वाले दिन
याद है।
तुम कितनी खूबसूरत लग रही थी।
जब तुम डोली में बैठ कर जा रही थी।
में वही पिछे खड़ा था।
शायद तुमने देखा ना हो
देखती भी कैसे तुम डोली में थी।
चार लोगों ने तुम्हे उठा रखा था।
जैसे आज मुझे उठा रखा है।
फ़र्क सिर्फ इतना है।
तुम्हारी डोली थी।
मेरी अर्थी है।
बाक़ी सब एक जैसा है।
तुम्हारे पीछे भी लोग थे।
यहाँ भी लोगों की कमी नहीं।
तुम पर भी फूलों की बरसात हो रही थी।
अरे देखो यहाँ तो फूलों के साथ पैसे मखाने ना जाने क्या क्या लुटाया जा रहा है ।
देखा में जीत गया तुमसे....
मैं अपनी क़िस्मत की साँसों को लकीरों में ना पिरो पाया
वो एक शाम जो मैने तुमसे मांगी थी।
तुम्हे आख़री बार देखना चाहता था।
जी भर के इस दिल में हमेशा के लिए बसा लेना चाहता था।
अब मेरी मोहब्बत का नाम क्या...?
मेरा इनाम क्या...?
तेरी मोहब्बत का नशा ना हो जिसमे
क़ो ज़ाम क्या...?
बिन तेरे जो गुज़री
वो शाम क्या....?
मेरे अल्फ़ाज़ों में छुपे दर्द को समझ
वरना मेरा पैगाम क्या...?
संकल्प मेरा नाम क्या...?
अरे तुम अभी भी छत पर ही खड़ी हो
में निकल आया तुम्हारी गली से
अब जाओ नीचे जाओ
तुम्हारा नया घर नए घर के लोग
सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे होंगे
और हां अगर कोई पूछे कि छत पर क्या करने गयी थी।
तो कह देना कपडे उठाने।
में नहीं चाहता मेरे नाम से तुम्हारा नाम खराब हो।
तुम्हारी मांग में सिंदूर अच्छा लग रहा था।
मुझे बंद आँखों से भी दिख गया।
साथ ही दिखी तुम्हारे हाथो में रची हुईं मेहँदी चूड़िया तुम्हारी बिंदिया।
सब अच्छा लग रहा था।
तुम बहुत खूबसूरत लग रही थी।
चलो मेरा घर आ गया
आज मेरी भी शादी है।
दुल्हन मौत है।
ये तुम्हारे जितनी ख़ूबसूरत तो नहीं
ना ही में इसे प्यार करता हूँ।
बस इतना मालूम है।
इससे शादी की तो ये मुझे मेरे सारे दर्दों से छुटकारा दिल देगी।
अब सहन नहीं होता मेरी सहन करने की शक्ति क्षीण हो गई है।
भारतीय हूँ ना और सारा देश ही अब सहन करने को तैयार नहीं तो में कैसे करू
देश आसहिष्णु हो गया है या नहीं ये तो में नहीं जानता
पर में ज़रूर आसहिष्णु हो गया हूँ।
मेरे पास तो इसका एक कारण भी है।
"तुम"
बेदर्द मोहब्बत में
बिन आँशुओ के रोना पड़ता है।
किसी को खोना पड़ता है।
किसी का होना पड़ता है।
चलो आग लग गयी है।
मुझे आग की लपटे चूम रही है।
लग रहा है जैसे तुम चूम रही हो।
मै मौत को गले लगाने जा रहा हूँ
तुम्हारा चेहरा दिख रहा है।
मुझे आग में
मुझे जलन हो रही है।
आग आखिर लगी कहाँ है।
बदन में या दिल में
और जलन किससे हो रही है।
आग से या उसकी क़िस्मत से।
जिसके नाम का सिंदूर तुम अपनी मांग में सज़ा कर मुझे देखने आई थी छत पर
कितनी हसीन थी ना हमारी आखरी मुलाक़ात
तुम छत पर
में अर्थी पर
वैसे तुम बहुत प्यारी लग रही थी।
एक दम आकरत की हूर की तरह।
चलो अब तो में पूरा ही जल गया।
ब्लेंकराइटर
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