याद

याद है  वो तुम्हारे घर की देहलीज़ 
में बेठा था सीढियों पर तुम आई और
 हवा के उस झोंके की तरह मुझसे लिपट कर बेठ गयी
जैसे पतझड़ के बाद हवा पत्तों को अपने आगोश में भर लेती है।

वो मुझे चूमना और कहना...
"मुझसे बच कर जाओगे कहा।""

वो पल जिंदगी के चित्रपटल पर कुछ यूँ चित्रित हो गए है।
की समय की मार उन्हें पल पल ताज़ा करती जा रही है।
-ब्लेंक राइटर

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