एक ग़ज़ल

मेरी मौहब्बत सा कोई दूजा समुंदर ना मिलेगा।
मेरे दिल से बड़ा कोई घर ना मिलेगा।

तूफ़ान ,आंधी उजाड़ दे आशियाना मेरा....
उनको भी मेरी आँखों में डर ना मिलेगा।

चिरागों को जला रखा है तुफानो में मैने
हवाओं को भी मेरे जैसा पहर ना मिलेगा।

है रात खामोश और दरिया भी थमा सा है।
लहरों को ठेहेरने के लिए दर ना मिलेगा।

समां से पूछ कर जलता ना कोई परवाना
दिये को बाती जैसा हमसफ़र ना मिलेगा।

भटकती आरज़ू को तुम दबा लो सीने में अपने
गर तूफ़ा जो निकला मेरा तो तुझे घर ना मिलेगा।

चाँद,सूरज,आग,पानी शागिर्द है मेरे
मुझ सा किसी और का कहर ना मिलेगा।
-ब्लेंक राइटर

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