गज़ल

ना जाने कहाँ से चलते है,
ये ख़्वाब निगाह में पलते है।
संग चाँद के ये जम जाते है,
और सूरज के संग जलते है।

ये ख़्वाब जहा से चलते है,
वो दर हमें भी बतला दो
हम जाकर वही पर ठहरेंगे
घर हमको भी वो दिखला दो।

फिर हर सपना, हर ख़्वाब मेरा झट से पूरा हो जाएगा
ना निकलेगा फिर चाँद कभी,सूरज थक कर सो जाएगा।
-ब्लेंक राइटर

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