नज़्म
मिरी हर ख़्वाहिश थी तुम
अब ख़्वाब में भी तुम्हारा नाम आने से वो टूट जाते है..
बिख़र जाते है बिलकुल उसी तरह
जिस तरह बिख़र गयी है मिरी ज़िंदगी...
तुम्हें पाने का हर ख़्वाब अधूरा ही रहा
पूरा हुआ तो बस तुम्हें खो देने का डर
और इस अधूरे और पूरे होने की कश्मकश में
बिख़र गया हूँ में...
तुम समेट लो मुझे और मुझे ज़िंदगी बना दो
ख़ुद अपनी ज़िंदगी ...
जो ना बना पाओ तो फिर से बिखेर देना मुझे
में उफ़्फ़ तक ना करूँगा.....
पर कभी आओ तो सही
-ब्लेंक़ राइटर
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