राही हम मतबाले
राही हम मतबाले जिए जा रहे है
सफ़र को बनाकर जाम पिए जा रहे है….
वो ज़ख़्म भी देता है तो ज़माने को बताता है
और एक हम हैं अपने होंठो को सिए जा रहे है।
किसी को बेज़्ज़त करना भी गुनाह है यहाँ जब
और एक वो हैं मेरा क़त्ल-ए-आम किए जा रहे है।
तरकीब निकालो उनसे मिलाने की हमें
ख़स्ता है मिरी हालात ,आप और किए जा रहे है
नए दरख़्तों में फल सब्र से आते है, ज़ाबिता है ये
ज़ाबित है दरख़्त और वो जल्दी किए जा रहे है।
-ब्लेंक़ राइटर
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