आज फिर
जिंदगी में सब कुछ हार कर भी
में मंद मंद मुस्कुरा रहा हु।
चंद दीवारों को तोड़ कर में
खुले आकाश में लहरा रहा हु
आज फिर में सिगरेट जला रहा हु
आज फिर में सिगरेट जला रहा हु
सुर्ख नर्म होठों से धुँआ उड़ा रहा हु
इन होठों को। चूमा है लबों ने तेरे
खुदगर्ज़ हु जो इन्हें जला रहा हु
आज फिर में सिगरेट जला रहा हु।
चंद लम्हों में गुज़र जाएगी जिंदगी
खुद को सिर्फ यही समझा रहा हु
तेरी बाहों में जो गुज़ारा वो "पल"
पूरी जिंदगी के समतुल्य बिठा रहा हु।
आज फिर में सिगरेट जला रहा हु।
तस्वीर को तेरी में निगाहों में छुपा रहा हु
फिर धीरे धीरे में तुझमे समा रहा हु
जिंदा रखना मुझे अक्श में तेरे
में मौत के बेहद करीब जा रहा हु।
आज फिर में सिगरेट जला रहा हु
कल शायद में तेरे पास ना रहू
फ़रियाद रहू एहसास ना रहू
रोना मत मुझे याद करके
में तो आँशुओ के साथ भी मुस्कुरा रहा हु।
आज फिर में सिगरेट जला रहा हु।
सुर्ख होठों से धुँआ उड़ा रहा हु।...
-ब्लेंक राइटर —
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