इश्क़ की परिभाषा

ये इश्क नहीं है बातों का
ना ख्वाबों का ना वादों का
ये इश्क़ फिज़ा में घुल जाए
ये इश्क़ नहीं जज़्बातो का....

ये इश्क़ नहीं है पन्नों पर
ना अक्षर में ना लफ़्ज़ों पर
ये इश्क़ तो है सावन की बूंदे
ना छप्पर पर ना छज्ज़ो पर

जो इश्क़ था पक्के धागों सा
वो इश्क़ नहीं अब होता है।
कोई प्रेम में तत्पर जगता है।
कोई निपट अकेला सोता है।

एक इश्क़ यहाँ पर रोता है।
एक इश्क़ वहां पर सोता है।
वो इश्क़ नज़र में बस जाता
जो इश्क़ कभी ना खोता है।

अब चार वर्ष का प्रेम चंद लम्हों में ढल जाता है।
कोई चाँद सा शीतल होता है कोई सूरज सा जल जाता है।
-ब्लेंक राइटर

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