"गरीबी"

पत्थर दिल भी मुस्कुरा दिया करते है।
जब हम ग़रीब को रोटी दिया करते है।


और सारे धाम धर्म ग्रन्थ हो जाते है पुरे तब..
वो ग़रीब मुस्कुरा कर जब दुआ दिया करते है।


ना तन पे है कोई कपड़ा ना मन में आस जीने की
सूखी रोटी निगल हलक तक पानी पिया करते है


ये कैसा दर्द आँखों में उतर आया है सीने से
वो मुस्कुराते हुए चेहरे होंठो को सिल लिया करते है।


वो कल देखा था पार्लर में हज़ारों रुपये देते किसी अमीर को....
इतने में तो ग़रीब अपनी बेटी बिदा किया करते है।


हर एक भाषण को सुनते है हरेक रैली में जाते है।
नेता को नहीं वो वादों को वोट दिया करते है।
ना जाने कौन आएगा गरीबी जो मिटाएगा


इसी उम्मीद में वो लोग जिया करते है।
-‪#‎ब्लेंकराइटर‬

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