Intolerance

देश का माहौल बहुत गर्म है।
और आए दिन लोग असहिष्णुता‬ की आग को हवा दे रहे है।
अभी हालिया हवा देश के सबसे बड़े कलाकरों में से एक आमिर खान ने असहिष्णुता‬....पर बड़ा बयान दिया।

क्या आमिर सच में देश छोड़ कर जाना चाहते है या उन्होंने सरकार से जवाबदेही मांगी है तथा उन्हें याद दिलाया है कि उनके कथन से लोगों में कानून के प्रति आस्था जगनी चाहिए, ना कि डर।
आमिर ने स्पष्ट रूप से सरकार का विरोध किया है।

आमिर खान को भी इसकी जमकर प्रतिक्रियाएं झेलनी पड़ रही हैं।
आए दिन कोई अवार्ड लोटा रहा है।
तो कोई बयान दे रहा है।
पेटिंग्स तोड़ी जा रही हैं। हर चीज को  हर रचना को धर्म आस्था और राजनीति की कसौटी पर कसा जा रहा है।
आखिर इस देश में हो क्या रहा है।
चल क्या रहा है इस देश की हवाओं में
अजीब सा या सिर्फ दिखावे जैसा भयभीत करनेवाला माहौल फिजाओं में तारी है।
है या नहीं....?
क्या वाकई देश में असहिष्णुता और अराजकता का माहौल बन गया है...?
क्या इस देश के अधिकांश बुद्धिजीवी किसी के मोहरे बने हुए हैं ....?
किसी के दबाब में है....?

यह सोचना हमें है।
यह हमारा देश है।
बरहाल अभी भी हमारा मानना है,
कि हम विश्व के सबसे सहिष्णु राष्ट्र हैं।

सवाल यह है कि अगर इस मुद्दे पर दलाई लामा देश के दिग्गज नेता और सारे देश को बोलना पड़ रहा है तो अवार्ड वापसी को सिर्फ विपक्षी पार्टी का षड्यंत्र कह कर सिर्फ एक ढोंग बताना सही नहीं होगा। और अब तो सहिष्णुता बनाम असहिष्णुता का यह मुद्दा देश की सीमाओं को पार कर अंतरराष्ट्रीय पटल पर पंहुच गया है।
अब सच में  यह आवश्यक हो गया है कि इस  विषय पर एक खुली राष्ट्रीय बहस हो देश के तमाम लोग सामने आये
प्रधानमंत्री जी खुल कर इस पर बात करे।

यह मुद्दा साहित्यकार उदय प्रकाश ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट के जरिए 4 सितम्बर को असहिष्णुता की बहस खड़ी करते हुए अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाकर किया। उन्होंने कहा कि यह समाज और सत्ता प्रतिष्ठान में व्याप्त खामोशी को तोड़ने की एक कोशिश है। इसके बाद पुरस्कार वापसी आम हो गया उन लोगो के लिए जो विरोध करना चाहते है।
कई नामचीन साहित्यकारों, फिल्मकारों और वैज्ञानिकों ने अवार्ड्स लौटा दिए और देश में बढ़ रही असहिष्णुता पर तीखी टिप्पणियां की।
भारतीय मूल के ब्रिटिश शिल्पकार अनीश कपूर ने इसे भारत में हिन्दू तालिबान का उभार करार दिया।
सोचने का विषय है कि अगर देश का बुद्धिजीवी तबका नाराज है और वह आहत महसूस कर रहा है तो कोई तो वजह होगी
तो प्रधानमंत्री कार्यालय को उनसे सीधा संवाद स्थापित करना चाहिए।
Jacob norby ने लिखा है।

"Blessed are the weird people - poets, misfits, writers, mystics, painters, troubadours - for they teach us to see the world through different eyes."

अगर हमारे देश के ऐसे हीरे ऐसे कोहिनूर ख़फ़ा है ।
तो सरकार को उनसे बात करना था
मगर हुआ इसका उल्टा। जो मंत्री साहित्य से कोषो दूर है वे बयानबाजी करने लगे। उन्होंने इस सब को राजनीति से प्रेरित बताना शुरू कर दिया।
विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह ने तो कह दिया कि कविता या लेख पढ़ने के बहाने विदेश में घूमने और दारू पीने पर पाबन्दी लगने से साहित्यकार बौखला गए हैं। अब तो उन्होंने यहां तक भी कह दिया है कि अवार्ड वापसी और सरकार विरोधी बयानबाजी के लिए देश के इन बुद्धिजीवियों को पैसा मिला है।

बेतुका बेहद तुच्छ ओछा बयान है यह तो।
अगर वह कलमकारों से बात नहीं कर पा रही है तो बंदूक थामे लोगों से कैसे बातचीत करेगी?

अगर लोकतांत्रिक देश के लोग टीपू सुल्तान की जयंती मानाने वाले लोगों  की हिंसा करने लगे ,गांधी का देश होने का दावा करने वाले मुल्क में उनके हत्यारे गोडसे का बलिदान दिवस मनाया जाने लगे
खाने पीने की आदतों को लेकर लोगो को मारा जाने लगे
भाषा रंग के नाम पर आज भी समाज के कुछ तबकों का उत्पीड़न व जारी हो तो दुनिया के सबसे सहिष्णु राष्ट्र, राज्य या समाज होने का हमारा दावा सिर्फ कागज़ों पर ही रह जाएगा।

असहिष्णुता‬....
गंभीर मुद्दा या हवाबाजी""
सवाल आपका
ज़वाब आपका.....

बस सोचने की बात यह है कि
जिस देश ने
Dawood Ibrahim
Hafiz Saeed
Hafiz Saeed
Mohammad Akhlaq,
Ajmal Kasab और ना जाने कितने लोगों को सहन किया क्या सच में आज उस देश और देश के लोगों की सहन करने की शक्ति
क्षीण हो गई है।
क्या वाक़ई देश आसहिष्णु हो गया है।
या यह सिर्फ़ हवाबाज़ी है।

जवाब आपका....?

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