"बेवफ़ा"
कभी वो कहती थी कि मेरा प्यार उसके जीने की बजह है।
पर आज कहती है की ये सबसे बड़ी सज़ा है।
कभी एक पल भी नहीं रह पाती थी बिन मेरे
और आज कहती है हो कोन तुम मेरे
कभी कहा करती थी की आप को पा कर ख़ुदा भी एक नक्श का पत्थर हो गया
फिर आज क्यों में उसके लिए जानवर से बत्तर हो गया
कहा करती थी की मरते दम तक मेरा साथ ना छोड़ेगी
साँसों की डोर टूटे फिर भी मेरा हाथ ना छोड़ेगी
फिर क्यों आज वो वादे सभी हवा हो गए
तुम बेवफ़ा हो या हम बेवफ़ा हो गए
आँशु मेरी कलम से आज तार तार बह गए
हम आज अकेले और तनहा रह गए
शायद मोहब्त का अपनी यही अंजाम होना था
मुझे हँसना भी तब आया जब मुझे रोना था।
तूने क्यों छोड़ दिया मुझे क्या कोई कमी रह गयी
इन आँखों में आज फिर एक नमी रह गयी
में फिर कभी वफ़ा का ज़िक्र ना कर पाऊगा
मर तो गया ही हूँ पर जी कर दिखाऊगा
वो हसीन पल सच में बहुत प्यारे थे
जो मेने तेरी बाहों में गुज़ारे थे
सूरज भी उस दिन शीतलता फ़ेला रहा था
उस दिन जब तू मेरे बालो को सहला रहा था
ये वादा है की में अब कभी तेरे रास्ते नहीं आऊगा
गर सामना हुआ भी तो निगाहे झुका कर गुज़र जाऊगा
तू जहा रहे सलामत रहे
गम तुझे छु ना सके
खुशियाँ तेरे अमानत रहे
तुझे बेइन्तहा प्यार मिले
ख़ुशियो का संसार मिले
बस एक दुआ मेरी खुदा से मंज़ूर करा दे
मेरे जनाज़े को तेरी गलियों से रुक्शत करा दे
तू आना मेरी कब्र पर तेरा इस्तकबाल करुगा
पर्दा हटा देना खुल कर तेरा दीदार करुगा
पर खुदा की भी वो क्या इंसाफ होगा
में मुर्दा कब्र के अंदर रहूगा
और तू बेनकाब होगा
उस वक़्त भी तुम यही सिलसिला निभाना
पर ज़रा अपने कानों को मेरी कब्र के पास लाना
तेरी दुआ में पूरी कर के जा रहा हूँ
इस हसीन मौत को गले लगा रहा हूँ
-ब्लेंक राइटर
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