"रक्षाबंधन"
एहसास कुछ यु दफ़न है सीने में
चाँदनी को समेटे हुए
कुछ यूँ पुरानी यादों का एक हसीं सा मुखोटा पहने हुए।
वो हसीं पल दीदी जो साथ हमने गुज़ारे थे।
कुछ मेरे थे पर मुझसे जादा तुम्हारे थे।
वो मेरा छोटी छोटी बातो पर रूठ जाना
आपका प्यार से ""बाबू" कहना मेरा झट से मान जाना
कुछ आप नखरे खाती थी
कुछ में रूठ जाता था
हम यूँ ही लड़ते रहते थे
ओर दिन बीत जाता था।
दी आपकी वो सारी बाते बहुत याद आती है।
दिन साल बीत जाते है
बस यादे याद रह जाती है।
वो हँसना आपका मुस्कुरा कर यूँ शरमाना.....
अपने छोटे भैया को दीवाना कर जाना
ना बात जो पूरी लगती अब
हर शाम अधूरी लगती अब
तुम बिन ये धरती बादल बन
हर याद अधूरी लगती अब...
हर राखी पर एक हाथ मेरा यूँ सुना सुना लगता है।
हर मौसम तुम संग अब मुझको यूँ भीना भीना लगता है।
दीदी बस इतना कहना है।
हर पल संग तेरे रहना है।
कुछ बाते पूरी करनी है।
कुछ यादे पूरी करनी है।
कब राखी का इंतज़ार मेरा गहरा कर यूँ रंग लाएगा
ना सूनी होगी फिर कलाई मेरी
जब रक्षाबंधन आएगा....
-ब्लेंक राइटर
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