"प्रेम का असली ताज़"

उस ‪‎प्रेम‬ की कल्पना ही नहीं की जा सकती जो प्रेम एक तुच्छ से मानव को इतनी शक्ति दे की वो मानव उस प्रेमरूपी ताक़त के बल पर एक विशाल पहाड़ को चीर कर दो कर दे..... ‪‎Dashrath_Manjhi‬

प्रेम....एक तुच्छ सा शब्द परन्तु अगर इसकी ताक़त की गहराई को गहराई से समझा जाए तो हम निशब्द हो जाएगे।
#प्रेम की पावनता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मीरा ने विष का प्याला उस प्रेम को पाने के लिए पिया था जो कभी उसका हो ही नहीं सकता था। परन्तु उस निस्वार्थ प्रेम की ताक़त ने मीरा के प्राणों की रक्षा की।

परन्तु आज वक़्त की धारा ने प्रेम की धार को बेअसर कर दिया अब ना वो प्रेम रहा ना वो प्रेमी जो मोहब्बत को खुदा की रेहमत और महबूब को खुदा का दर्ज़ा दिया करते थे।

तो क्या आज के प्रेमियों के लिए मौहब्बत का मतलब सिर्फ वासना तक ही सिमट कर रह गया है। क्या आज युवाओ को मोहब्बत सिर्फ चेहरे से होती है।
अगर ऐसा है .....तो ऐसे युवाओ को उस सच्चाई से भी मुखातिब हो जाना चाइए की..
‪‎मौहब्बत_करना_है_तो_जज्बातो_को_एहमियत___देना_सीखो‬
‪‎चेहरे_से_शुरु_हुई_मोहब्बत_बिस्तर_पर_जा_कर__खत्म_हो_जाती_है...

अरे मौहब्बत तो खुदा की नेमत है। इस कायनात में खुदा की बनाई सबसे हसीं चीज़ है मोहब्बत...
एक तरफ अमेरिका प्रेम को नए आयाम दे रहा है।
सही या गलत ...?? नहीं पता....
हां इतना ज़रूर कहूँगा इस दुनिया में हर इन्सां को हक है मोहब्बत करने का ....
‪#‎कभी‬ भी ‪#‎किसी‬ से भी....
तो दूसरी तरफ कुछ दिन पहेले हमारे देश के युवाओ ने एक आन्दोलन शुरु किया था ‪#‎kiss_of_LOVE‬
मेरी नज़र में बेतुका बाहियाद गलत
प्यार को जताने का ये तरीका गलत है।

मेरे लिए ये #KISS_OF_LOVE नहीं ‪#‎KISS_OF_LUST‬ था....

देश के ऐसे युवाओ की सोच को सलाम....
जिन्होंने प्रेम की परिभाषा ही बदल दी।

अरे प्रेम का सही अर्थ समझना है तो....
मीरा बाई से समझो
हीर-रांझा से सीखो....
लैला मजनूं से सीखों

उन्होंने हमें सिखाया ज़रूरी नहीं की हर प्रेम मिलन हो...
जुदाई का नाम भी प्यार है।
जुदा रहकर भी प्रेम को पाया जाता है।

और असल में वही प्रेम सच्चा है।

चलो ये तो बड़े लोगो की बाते हुई....

इन सब से ऊपर
भी एक प्रेम है।
और रहेगा
‪#‎दशरथ_माँझी‬
बिहार में मगध के रहने वाले दशरथ माँझी ने अपनी पत्नी के समय पर अस्पताल न पहुँच पाने की वजह से हुई मृत्यु के दर्द को ,एक पहाड़ की चुनौती के रूप में स्वीकार कर उस पहाड़ को 22 वर्षों में काट कर दो फाड़ कर डाला। इस कठिन पथ पर उसके साथ कोई नहीं था सिर्फ एक छेनी, एक हथौड़ा परन्तु इस सब से भी बड़ा और दमदार साथी भी था उसका....

उसकी पत्नी की यादे और प्रेम....और इसी प्रेम की दम पर एक तुच्छ से मानव ने एक विशाल पहाड़ को चीर डाला
दिल से सलाम दशरथ माँझी को, जिन्होंने एक ऐसे असंभव को संभव बनाया
उनका प्रेम सदियों सदियों के लिए अमर हो गया....
सवाल यह है कि असल मोहब्बत की निशानी क्या....?
""ताजमहल"" जिसे सदियों से ये दर्ज़ा दिया गया हैं।
क्या... सच में ताजमहल इसका हक़दार है...?
सवाल आपका...?
ज़वाब आपका...?

लाखों लोगों से दिन रात मजदूरी करवा कर
अपनी हज़ारो बेगमो में से किसी एक ख़ास के लिए एक महल बनवाना और उसके बाद उस बेचारों के हाथ कटवा देना....

ये प्यार था....?
या दिखावा....
अरे प्रेम ,मौहब्ब्त तो निस्वार्थ होती है।

ना किसी चीज़ को पाने की उम्मीद ना कुछ खोने का डर...

दसरथ मांझी...
ना अपनी बीवी को वापस पाने की चाह..
ना अपनी जान खोने का दर

बस एक उम्मीद एक आशा एक सपना...
की अब कभी कोई...
इस पहाड़ की वजह से अपनी मौहब्बत को ना खो दे.....

‪#‎शानदार_जबरदस्त_जिंदाबाद‬.....
‪#‎जब_तक_तोड़ेंगे_नहीं_तब_तक_छोड़ेंगे_नहीं‬
आशा करता हूँ कि प्रेम की इस मिसाल से हम कुछ सीखेगे.....
-ब्लेंक राइटर

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