खाँसी, मफ़लर और केजरीवाल

फिर वही दौर था
फिर वही शाम...थी.

जीत लिया दिल्ली को
दिल्ली केजरी के नाम थी।

कुछ लोग कल कह रहे थे वो "झूठा" है वो "भगोड़ा" था
कुछ और नहीं था वो सिर्फ भाजपा काँग्रेस का "रोड़ा" था।

नेता नगरी में वो नया था।
तब वो भ्रष्टाचार में ना सना था।

वो पढ़ा लिखा था पढ़े लिखों के बीच आया था।
झाड़ू पर बैठ कर उसने अपना रंग जमाया था।

वादे किये थे बड़े बड़े उसने सबको भरोसा दिलाया था।
तभी तो लोगों ने उसको सर आँखों पर बिठाया था।

दिया था अपना अमूल्य वोट उसको
और दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया था।

लोगों को उससे आस थी।
दिल्ली में बहुत प्यास थी।
पानी ना था पीने को
और ना बिजली भी ना खास थी।

तब वो हीरो बनकर सामने आया था
दिल्ली की नैया को पार लगाने का
उसने बीड़ा उठाया था।

तभी तो लोगो ने उसको अपना मसीहा बताया था
गद्दी पर बिठाया था।

क्योंकि लोग उस वक़्त एक अजीब सा दर्द सह रहे थे।
जंतर मंतर पर सब चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे
कि
"अबकी चोट करारी है
फिर मफलर की बारी है।
वोट किसी को तुम दे लो
फन सबका फ़नकरी है।

नहीं चलेगा कोई पेतरा
अब मफलर की बारी है।"

तब लोगों का रबैया बहुत सख्त था
जिसको जिताया अन्ना का वो भक्त था।

गाँधी की बाते करता था।
लोकपाल लाने की बातों पर
वो हरपल हामी भरता था।

पर आज ना वो केजरी रहा
ना रही उसकी वो "वाल"
अब वो भी चलता है
गन्दी गन्दी चाल

नहीं निकलता वो मफ़लर
गुम गया है लोकपाल
क्योंकि अब वो भी चलता है
गन्दी गन्दी चाल...

जो बोलता था अपने भाषषो में
कर ना पाया वो कमाल
ना रहा वो दहाड़ने वाला शेर
ना रही वो खाल
अब वो भी चलता है
गन्दी गन्दी चाल

केजरी जी ये तुमने कैसा सिला दिया
लोगों की भावनाओं को हिला दिया
उम्मीद थी कि "आप" साफ पानी देगी
"आप"ने तो पानी में भ्रष्टपना मिला दिया

कैसा सिला दिया....?

हम "आप" आप करते रहे

"आप" हम हम में लगे रहे।

आप कब "आम" से अँगूर हो गए
दिल्ली के लोग होशियार से लँगूर हो गए

अंत में बस इतना ही कहूँगा

केजरी जी
बाक़ी नेताओं की तरह
आप भी महान निकले
पक्के फ़ेकू, पूरे चोर
सच्चे बेईमान निकले

और भबिष्य में अगर फिर झाड़ू पर वोट माँगने आओगे
वही झाड़ू संग में बेलन ब्याज में डंडे खाओगे।
ब्लेंकराइटर

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