ज़िन्दगी


         
ज़िन्दगी दर-ब-दर भागती है।
कभी इधर तो कभी उधर भागती है।
जो लोग थक गए है चलते चलते राह में
मंजिल अब उन्ही के घर झाँकती है।
ज़िन्दगी दर-ब-दर भागती है।

तू रुकना नहीं कभी चलते चलते
सूरज ढलता नहीं निकलते निकलते
धूप छाव तो हिस्से है हर दिन के
हर शाम अब सुबह से पहर मांगती है।
कभी इधर तो कभी उधर भागती है।
जिंदगी.....

वो पर्वत जो तन के खड़ा है अचल
तू भी चल मन ना हो तेरा कभी बिचल
रास्ता निकलेगे इन पहाड़ो से ही यकीं रख..
हर राह मंजिल की ही दूरी नापती है।
कभी इधर तो कभी उधर भागती है।
जिंदगी....

ये हवा ये फिज़ा और कहती है ओस की बुँदे
जिंदगी की जंग में कभी हम भी तो कूंदे
हर नदी मिलती है समुन्दर में ही जा कर
कोई गंगा कोई चम्बल कोई ताप्ती है।
कभी इधर कभी उधर भागती है।
ज़िंदगी....
-ब्लेंकराइटर

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