"जज़्बा"

बस्ती ढेह गयी पर मेरा मक़ा अभी बाकी है।
उम्मीदों के सफ़र पर मेरा निशां अभी बाकी है।
बेगेरत था वो जिसने छीन ली मुझसे जीने की ज़मी
ज़मी ही तो लुटी है आसमां अभी बाकी है।
-ब्लेंक राइटर

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