"मुलाक़ात"
पतझड़ के सुहावने मौसम की क्या सौगात थी...
तेरी गुलाबी होंठो की हाय क्या बात थी
तुम भी थे हम भी थे और तेरे होंठो की महक हर पल मेरे साथ थी....
वो हिज़र की ठंडी रातो को समेटे हुए
जब चूमा तुमने होंठो को मेरे...
खुदा कसम दिल भी थम गया
और सांस भी बेसाज़ थी....
कड़कती सुबह को जब देखा हमने होंठो को तेरे
उन होंठो में आथाह समुन्दर की प्यास थी....
वो जाड़े का मौसम लपेटे हुए मानसून का नक़ाब
कह रहा था मुझे पी ले ज़रा शबाब
हम भी चूमे होंठो को तेरे
उस वक़्त मेरे होंठो की यही आवाज़ थी....
ठंडो की सीतल दोपहर में
ना मेने कुछ कहा ना तुम कुछ बोली
वो सिर्फ होंठो से होंठो की मुलाकात थी.....
-ब्लेंकराइटर
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