वो मुलाक़ात
"बहुत दिन हो गए तुम्हे महसूस किए
बहुत दिन हो गए छुआ नहीं रूह को तुम्हारी
उन चिरागों को आज भी जला रखा है
जो तुमने अपनी आँखों के नूर से जलाया था
अपनी खुशबू से महकाया था।
बहुत दिन हो गए कोई संदेशा नहीं मिला
"भीगा नहीं हूँ मैं मोहब्बत की बारिश में तेरी"
वो ख़त आज भी मुझे जुबानी याद है।
वो पल तेरी बाहो में गुज़ारे जो वो आज भी मेरे साथ है।
"जब मेरी बाहों के घेरे में तुम्हारी आँखों से आँशुओ की बौछार हो रही थी"
"वो पल सच में बेहद हसीं हमारा था
दिल मेने रख लिया
रूह का रिश्ता तुम्हारा था"
मानों वक़्त ने अपनी धारा में बहना बंद कर दिया हो
समय के पहियों की रफ़्तार मानो थम सी गयी हो
जिस तरह अर्जुन के रथ का पहिया धस गया था रणभूमि में"
तभी दरवाज़े पर किसी से दस्तक दी और समय अपनी गति से चलने लगा।
पर उस एक पल में पूरी ज़िन्दगी जी ली
अब तलक दिल में वो यादे ताज़ा है।
जैसे किसी रात के पहर का मिलन सुबह की पहली भोर से होता है।
हम मिले बिछड़े ये मिलन
सदियों में एक बार होता है।
सूरज से चाँद का मिलन कभी हो नहीं सकता
सूरज के ढलने पर ही चाँद निकलता है।
चाँद गुम हो जाए तब ही सूरज जलता है"।
"हमारी मोहब्त की दास्ताँ भी दरिया के उन दो किनारों की तरह है
जो चलेगे तो साथ साथ मगर जुदा रहकर"
-ब्लेंक राइटर
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