दरवाज़े के उसपार


इरफ़ान चलो उठों जल्दी से बेटा सुबह हो गई तेरे अब्बू कबके काम पर चले गए
("कड़कड़ाती सर्दी में सुबह -2 माँ ने अपने बेटे के सर पर हाथ फ़ेरते हुए कहा""))
माँ नहीं आज में स्कूल नहीं जाउगा बहुत ठण्ड है।
(‪‎बेटे‬ ने रजाई को हटाकर कहा और फिर रजाई ओढ कर सो गया)

अम्मी-बेटा अगर स्कूल नहीं जाओगे पड़ोगे लिखोगे नहीं तो बड़े अफसर कैसे बनोगे
((अम्मी ने अपने बेटे के माथे को चुमते हुए कहा))
इरफ़ान-क्या सच में माँ..? में पड़ लिख कर बड़ा अफसर बनुगा
(बेटे ने झट से उठ कर उत्सुकता से पूछा)
माँ- हां मेरे फ़रिश्ते ज़रूर अल्लाह ताला तुम्हे नेकी दे तुम्हारे अन्दर ईमान बनाए रखे।
(अम्मी ने फिर बेटे के हाथों को चुमते हुए कहा)

फिर एक मासूम सा चेहरा इरफ़ान ऱोज की तरह जब सो कर उठा तो उसने अल्लाह के बनाए सबसे बेशकीमती तोहफ़े(अम्मी) को अपने सीने से लगा लिया।
और रोज़ की तरह स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगा।

अम्मी-बेटा आज डब्बे में क्या ले जाएगा
(अम्मी ने रसोइखाने से आवाज़ लगाई)

इरफ़ान-जो तुम अपने हांथो से पका दो अम्मी..

इरफ़ान-अम्मी पानी बहुत ठंडा है मुझे नहीं नहाना
(नखरे करते हुए चिल्ला कर बोलता है)

अम्मी-नहीं बेटा इरफ़ान अगर नहाओगे नहीं तो अल्ला तुम्हे अपनी रज़ा में शामिल नहीं करेगा।
अल्लाह सिर्फ उन्ही को अपना बाशिंदा बनाता है जो पाक़ और साफ़ होते है।
जैसे तेरा अब्बू
(अम्मी ने प्यार से कहा)

इरफ़ान- ठीक है अम्मी तुम कहती हो तो नहा लेता हूँ।
(इरफ़ान नहा कर आता है।)

इरफ़ान -अम्मी मेरी ड्रेस कहाँ है।
अम्मी-दीवार पर टंगी होगी बेटा
(अम्मी ने खाना पकाते हुए रसोइखाने से जवाब दिया)

इरफ़ान-बेल्ट कहाँ है...???
अम्मी-अलमारी में देख ले बेटा...

इरफ़ान-अम्मी स्वटर कहाँ है...?
अम्मी-अब्बू की अलमारी में रखी है। बहुत मेली हो गयी थी धो कर रखी है।

इरफ़ान-अम्मी मेरे जूते...?
अम्मी-(मन ही मन बड़ बड़ाते हुए खुद से ही- या अल्लाह इस नामुराद ने तो मेरी साँस ही अटका दी
कम्बक्खत कही मरता भी नहीं)
गुस्से में आकर माँ ने बोला
-मेरे सर पर रखे है

इरफ़ान-में तो कबका तैयार हो गया अम्मी में तो आपके मजे ले रहा था।
(हँसते हुए इरफ़ान ने कहा)
अम्मी-नामुराद में तुझे मजे लेने की चीज़ लगती हूँ
आने दे तेरे अब्बू को खबर लेगे वो तेरी
(धमकाते हुए माँ ने कहा)

अम्मी-ले तेरा डब्बा लग गया है। अच्छे से खा लेना और पढ़ाई अच्छे से करना बेटा अच्छी तालीम मिलेगी तो अच्छे और नेक इंसान बनोगे अल्लाह का मकसद पूरा होगा
(रसोईघर से बाहर आकर माँ ने बेटे से कहा)

इरफ़ान-ठीक है माँ में चलता हूँ।

अम्मी-जल्दी आना बेटा शाम को तेरे अब्बू और में तेरा इंतज़ार करेगे

इरफ़ान-फ़िर अब्बू और के साथ घुमने चलेगे ...

अम्मी- हां हां ज़रूर अब तू जा...
(अपनी आँखों के तारे को अपने से दूर करते हुए एक माँ ने कहा)

अपने बेटे को अपने कलेजे के टुकड़े को अपने से दूर करना बहुत कठिन होता है एक माँ के लिए और ख़ासकर उस पेशावर की माँ के लिए जहाँ आये दिन कोई ना कोई मरता रहता है।

मगर उस माँ में अपने बेटे को इतनी कड़कड़ा ती ठण्ड में भी स्कूल भेजा ताकि वो पड़ लिख कर एक नेक इन्सां बन सके

और अभी हाल ही में जिस देश की एक 17 साल की ‪#‎मलाला‬ को शांति के लिए सबसे बड़ा सम्मान
(‪#‎नोबल‬ ) मिला हो वहां की हर माँ को अपने बच्चो में मलाला दिखने लगी है।))))

अपने बेटे को रुखसत करके वो माँ फिर अपने रोज़ के काम में लग गयी।

वक़्त बीत गया और शाम दरवाज़े पर दस्तक दे रही थी। काम भी सारा खत्म हो गया तो माँ थोड़ा आराम करने के बिस्तर पर लेती तो थी।मगर उसकी नज़रे दरवाज़े पर एका एक टिकी हुई थी।

वही दूसरी और बेटा स्कूल में मन लगा कर पड़ रहा था अपनी माँ की उस बात को याद करके जो माँ ने उससे सुबह सुबह उसके माथे को चुमते हुए कही थी।

तभी कही से एक भीनी भीनी खुशबू हवा के साथ उड़ कर उसके पास आई..
और उस नन्नी सी जान के पेट में चूहे दोड़ने लगे
उसकी अम्मी ने डिब्बे में इतना लज़ीज़ खाना जो पका कर रखा था।
इरफ़ान ने झट से डब्बा खोला और अपने दोस्तों के साथ रोज़ की तरह खाने लगा
वह अपनी अम्मी के हाथो की तारीफ कर ही रहा था की
तभी अचानक कुछ लोग गोलिया बरसाते हुए अन्दर दाखिल हुए और ज़ोर से मजहाबी नारे लगाने लगे।

वो बच्चे आनन फ़ानन में सीटों के नीचे छुपने लगे।
गोलिया चल रही थी और अनेकों माँ ओ के सपने मर रहे थे
नन्नी सी साँसों की डोर टूट रही थी।
और चंद पलों में ही वो शिक्षा का मंदिर की दीवारे कई नन्नी जानों के खून से सन गई और वह मंदिर नन्नी लाशों से भरा कब्रिस्तान बन गया।

वही अपने बेटे का इनतजार कर रही माँ की आँखे थक गयी थी।
माँ को ये 5 घंटे काटना बड़ी टेडी खील लगता है।
मानों जैसे वक़्त थम सा जाता हो
समय अपनी रफ़्तार में बहना बंद कर देता हो

माँ एका एक अपने चिराग की राह देख रही होती है।
मगर थकी हारी माँ की आँख लग जाती है।

कुछ वक़्त बाद माँ की आँख खुलती है।
अम्मी-बेटा इरफ़ान तुम आ गए।
(किसी की आहाट सुन कर माँ कहती है।

शबाना-रज़िया स्कूल में आतंकियों ने हमला कर दिया 140 लोग मारे गए जिनमे तुम्हारा इरफ़ान भी....

रज़िया-क्या ....?क्या बकवास कर रही है आप(सुन्न हो कर)

शबाना-हां रज़िया ये सच है।
रज़िया-नहीं ये नहीं हो सकता (रोते हुए)

शबाना-अपने आप को सम्हालों रज़िया
(और शबाना चली जाती है)

रज़िया तो जैसे मुर्दा बन गयी हो
जैसे उसकी आत्मा ने उसका जिस्म छोड़ दिया हो
उसके पेरी तले ज़मीन खिसक गयी ...
रज़िया की आँखों का तारा आल्लाह को प्यारा हो चुका था।
रज़िया को सुबह का वो पल याद आ रहा रहा था जब इरफ़ान स्कूल जाने को मना कर रहा था
रज़िया सोच रही थी की काश उसने इरफ़ान की बात मान ली होती
काश उसने अपने बेटे को और प्यार कर लिया होता
काश...?
काश...? ओर बस काश..

अब रज़िया के पास सिर्फ यही रह गया था।

जिस चिराग का वो इंतज़ार कर रही थी
अब वो बुझ चुका था।

जो सपने उसने देखे थे उनका खून हो चूका था।
वो इंताजर करती रही और उसका इरफ़ान स्कूल से सीधा ज़न्नत चला गया।
तभी कहीं से कुछ लोग उसके इरफ़ान को उसके पास ला देते है।
मगर अब इरफ़ान बोल नहीं सकता
अब इरफान अम्मी के मज़े नही ले सकता
अब इरफान इरफ़ान नहीं रहा
अब इरफ़ान एक चुप सी लाश बन गया था।
जैसे ही रज़िया ने सफ़ेद चादर हटाया
उनकी आँखे फटी की फटी रह गयी
उस नन्नी सी जान के सीने पर सेकड़ो गोलिया सजी हुई थी।
उन नापको ने उनके सीने के टुकड़े का सिना छलनी कर दिया था।

‪‎जिस‬ बेटे को बचपन से अपने सीने का दूध पिलाती आई थी
जिसे अपने सीने से लगा कर सुलाती आई थी।
आज उसी के सीने पर अपना सर रख कर फूट फूट कर रो रही थी वो मज़लूम माँ रज़िया....

अपने बेटे को ताबूत में सुला कर कब्र में दफना कर रज़िया को ऐसा लग रहा था मानों उसकी आत्मा को दफना दिया हो।
घर लोट कर आने का मन नहीं था
मगर आना तो था...
घर पर अब सब बदल चुका था
बस एक उम्मीद के सिवा....

‎इरफ़ान‬ आएगा....उसका बेटा आएगा

उसकी आँखे जैसे कह रही हो की इरफ़ान ज़रूर आएगा
आँखों में आँशुओ का सेलाब लिए रज़िया दरवाज़े पर बेठी है और अपने इरफ़ान का इंतज़ार कर रही है...

ख़ौफ़नाक हैवानियत दरिंदगी का ऐसा नंगा नाच पहेले कभी नहीं देखा
मानो इंसानियत का खून किया गया हो।

आखिर गलती किसकी थी
उस ‪‎माँ‬ की जिसने एक नेक इरादे को पूरा करने के लिए अपने बेटे को स्कूल भेजा...?
उस बेटे की जो अपनी माँ के सपनो को पूरा करना चाहता था।
जवाब आपका ...?

"कमज़ोर मुल्क है वो शियासत नापाक हो गयी
ज़र्रा ज़र्रा खून से सन गया नीयत उनकी साफ़ हो गयी
देख कर हालत बिलखती माँओ की तो खुदा भी रोया है
छाती जो उस माँ की फटी तो यहाँ भी माँ उदास हो गयी"
-ब्लेंक राइटर

ब्लेंक राइटर

Comments

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  2. अच्छा है, लेकिन शाब्दिक गलतियां बहुत ज्यादा हैं। सुधार करो।

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  3. अच्छा है, लेकिन शाब्दिक गलतियां बहुत ज्यादा हैं। सुधार करो।

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  4. शुक्रिया सर और मेरी भाषा पर पकड़ कमज़ोर है जिसपर में काम कर रहा हूँ। थोड़ा वक़्त लगेगा
    आगे से शब्दों पर ध्यान दूंगा

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