""ख़ोज""
कोई नज़र तो कोई ज़िगर ढूंढने लगा।
में राहगीर मेरे सपनो का शहर ढूंढने लगा।
जो रात भर सोये नहीं वो परिंदे भी अज़ीब है।
में तो एक नींद के लिए पहर ढूंढने लगा।
वो घूम रहे है सारी दुनिया उस ख़ुशी की ख़ातिर
में तो माँ की दुआओं से भरा मेरा घर ढूंढने लगा।
वो रोज़ माँगते है ख़ुदा से क़िस्मत अपनी
में माँ की ख़ुशियो में मेरा मुक़द्दर ढूंढने लगा।""
-blankwriter
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