अधूरे ख़त

ख़त जो कभी पढ़े ही नहीं गए...
ख़त जो अपने सही मुकाम तक पहुँचे ही नहीं।
जो जीते जी ही अमर हो गए ""
वो ख़त...

जिन्हें खोला ही नहीं गया
निकाला ही नहीं गया लिफ़ाफ़े से...
चूमा ही नहीं उन होंठों से जिन होठों को नाज़ था
वो नाम पुकारने में जिस नाम से ये ख़त लिखा था....

फ़र्ज़ का नाम लिख गया मोहब्बत की दीवारों पर
वो प्रियसी आज भी उस देहलीज़ पर बेठी है।
जिस देहलीज़ को चूम कर गया था...उसका प्रियतम।

वो माँ आज भी इंतज़ार कर रही है कि कब वो अपने बेटे को गले लगा सके...
वो ख़त बया करते है।
वो ख़त दुआ करते है।

मगर वो ख़त कभी पढ़े ही नहीं गए।
बेटा थक गया माँ से पूछ पूछ कर...
मगर उसकी माँ तो जैसे बेज़ुबा हो गयी हो।
बेटा माँ से पूछता रहता है कि..

माँ तूने आज वो लाल बिंदिया नहीं लगाई
पापा के नाम के सिंदूर से मांग भी नहीं सजाई।
माँ क्यों तेरे आँसु थम नहीं रहे..
सब रो रहे है क्या पापा नहीं रहे....??

उस वक़्त उस बच्चे की माँ जिसे ख़त का इंतज़ार था।
और उस बच्चे की माँ जिसके ख़त का इंतज़ार था।

दोनों ही मानों धरती का सीना चीर कर उसकी कोपलों में समां गयी हो।
बेबस नज़रे उस मासूम की उम्मीद की नोंच नोंच कर खा रही हो जैसे...

मगर अब भी वो ख़त वैसे ही है।
ना पढ़े गए ना सुने गए बस लिखे गए...

वो अधूरे ख़त...
वो एक ‪#‎शहीद‬ के ख़त....
#शहीद जो किसी का बेटा किसी का बाप
किसी का सिंदूर था...
वो आज सीमा पर बन्दे मातरम् लिख गया....
और वो ख़त सदा जिंदा रहेगे.....

किसी की मोहब्बत बनकर तो किसी के बुढ़ापे का सहारा बनकर....
वो ख़त.... या वो ख़त शायद लिखे ही ना गए हो...?
-ब्लेंक राइटर

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