"लबों पर लब"

आज मोहब्त का हर लम्हा चुरा लिया
मैने होंठों को तेरे लबों पर सज़ा लिया....


तेरे इक़रार की साकित सी उम्मीद है पर...
बिन पूछे ही तुझे अपना बना लियामेने होंठो को तेरे लबों पर सजा लिया....


दिन रात थक गया हूँ तेरी तस्वीर चूमते चूमते...
फ़क़त आज तेरे होंठो को भी चाह लिया....


तुझे अपना बना लिया
इस दिल में बसा लिया
इस ज़िंदगी में छा रहा था अँधेरा घना
तेरे लबों से मेने दीपक जला लिया...


तुझे अपना बना लिया।....
और शायद तुम मेरी हो या ना हो...फ़िक्र नहीं...
मैने सदा के लिए तुम्हें दिल में समा लिया...
होंठो को चूमा तेरे और लबों पर सजा लिया....


अब तुम कह दो मुझसे इतना
पूरा होगा मेरा सपना
में तुमको अपना मान चूका
में भी तो हूँ तेरा अपना



गर फिर भी तुम इंकार करो
मुझको रोको प्रतिकार करो
फिर क्यों ना तुमने इंकार किया
चुप्पी साधी सत्कार किया
बाहों का निर्मल हार लिए
जब मेने तुमको चूमा था
फिर ठंडी ठंडी पवन चली
और मन मेरा फिर झूम था


अब झूम लिया है मन मेरा
तन भी मेरा तुम महका दो
भर लो मुझको तुम बाहों में
आगोश में अपने बहका दो।


फिर अपना सारा जीवन में तुमको ही अर्पित कर दूँगा।
तुम कह दो कि तुम मेरी हो
फिर मांग तेरी में भर दूँगा।
-Blankwriter

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